चित्तौड़गढ़ जिले के भोपाल सागर में 29 मई को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के प्रस्तावित दौरे से पहले राणा पूंजा की वेशभूषा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस दिन भोपाल सागर में महाराणा प्रताप, राणा पूंजा व अन्य महापुरुषों की प्रतिमाओं का अनावरण सीएम द्वारा किया जाना है। इसी क्रम में वहां स्थापित राणा पूंजा की प्रतिमा की वेशभूषा को लेकर राजपूत समाज ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि राणा पूंजा सोलंकी राजपूत थे और प्रतिमा में उनकी वेशभूषा को सही ढंग से नहीं दर्शाया गया है। इसको लेकर समाज ने पिछले दिनों चित्तौड़गढ़ जिला कलेक्ट्रेट पर विरोध प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा था।
भील व राजपूत समाज के अपने-अपने दावे
दूसरी ओर, इस मुद्दे को लेकर भील समाज में रोष है। भील सेना चित्तौड़गढ़ ने जिला कलेक्ट्रेट पहुंचकर विरोध प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में कहा गया है कि राणा पूंजा को राजपूत बताकर मेवाड़ के भीलों के गौरवशाली इतिहास से छेड़छाड़ की जा रही है। उनका दावा है कि राणा पूंजा भील समुदाय के एक वीर योद्धा थे, जिन्होंने महाराणा प्रताप के साथ मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उन्हें किसी अन्य जातीय पहचान से जोड़ना ऐतिहासिक रूप से गलत और समुदाय की भावनाओं के खिलाफ है।
क्या पूंजा दो अलग-अलग व्यक्तित्व थे?
इस बीच, जनता सेना के पूर्व विधायक रणधीर सिंह भिंडर ने मामले को स्पष्ट करते हुए कहा कि इतिहास में राणा पूंजा नाम के दो व्यक्ति हुए हैं, एक सोलंकी राजपूत और दूसरे भील समुदाय से। दोनों के नामों की समानता के कारण वर्तमान में भ्रम और विवाद की स्थिति पैदा हो गई है। उन्होंने कहा कि दोनों की ऐतिहासिक भूमिका अलग-अलग रही है और स्पष्टता के बिना उन्हें एक मानना अनुचित है।
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