जोधपुर में एक साइबर गिरोह स्काइप और टेलीग्राम के जरिए विदेशी नागरिकों का डेटा चुराकर बेचने का धंधा कर रहा था। कॉल सेंटर में बैठी टीम विभिन्न ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से डेटा का सत्यापन करती थी और फिर उसे डार्क वेब पर बेच देती थी। जांच में सामने आया कि गिरोह अमेरिका, कनाडा समेत अन्य देशों के नागरिकों का डेटा चुराकर 10 हजार लोगों का डेटा 10 डॉलर में बेचता था। सूचना के आधार पर जोधपुर पुलिस ने कॉल सेंटर पर छापा मारकर गिरोह के सरगना सौरभ सिंह चौहान समेत 4 लोगों को हिरासत में लिया है। शुरुआती जांच में सामने आया है कि गिरोह मुख्य रूप से वरिष्ठ अमेरिकी नागरिकों को निशाना बनाता था। डेटा बेचकर मिले अमेरिकी डॉलर से वे क्रिप्टो करेंसी खरीदते थे। पुलिस आरोपियों से पूछताछ कर मामले के अन्य पहलुओं की भी जांच कर रही है।
विदेशी नागरिकों का चुराते थे निजी डेटा डीसीपी (ईस्ट) आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि रातानाडा इलाके में गणेश मंदिर के पास एक कॉल सेंटर पर संदिग्ध गतिविधियों की सूचना मिली थी। एसीपी (ईस्ट) के निर्देशन में रातानाडा थाने की एक विशेष टीम गठित की गई। टीम ने कई दिनों तक कॉल सेंटर के बारे में जांच की। जांच में पता चला कि विदेशी नागरिकों का डाटा एकत्र कर उसे बेचकर मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है। इसके बाद मंगलवार रात को पुलिस की संयुक्त टीम ने रातानाडा सर्किट हाउस रोड स्थित माइक्रोलॉजिक इन्फोटेक के कार्यालय पर छापा मारा। यहां चल रहे कॉल सेंटर में विदेशी नागरिकों का निजी डाटा चुराने, विभिन्न माध्यमों से उनका क्रॉस वेरिफिकेशन करने और उस डाटा को डार्क वेब पर बेचने के साक्ष्य मिले।
लैपटॉप, कम्प्यूटर व अन्य उपकरण जब्त
कॉल सेंटर से 32 कम्प्यूटर, 8 मॉनिटर, 28 लैपटॉप, 19 पेन ड्राइव, 11 मोबाइल मिले हैं साथ ही इन सिस्टम में अमेरिकी नागरिकों का निजी डाटा भी मिला है। पुलिस डिवाइस से डाटा निकालने का प्रयास कर रही है, ताकि गिरोह की पूरी करतूत सामने आ सके।
डाटा बेचने में भी इस गिरोह की भूमिका
आईपीएस हेमंत कलाल ने बताया कि गिरफ्तार गिरोह से कई देशों के नागरिकों का डाटा मिला है। गिरोह को 10 हजार लोगों का डाटा बेचने के बदले 10 डॉलर मिलते हैं और यह डाटा लाखों में है। शुरुआती जांच में इस गिरोह का मास्टरमाइंड सौरभ सिंह चौहान और उसके तीन अन्य साथी हैं।
स्काइप, टेलीग्राम या अन्य माध्यमों से भी जुटाया जाता था डेटा
पुलिस जांच में पता चला कि यह गिरोह स्काइप, टेलीग्राम या अन्य माध्यमों से डेटा जुटाता था। इसके बाद कॉल सेंटर में अपनी टीम से और किसी अन्य ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के जरिए डेटा का सत्यापन कराता था। इसके बाद उस डेटा को अलग-अलग माध्यमों से बेच देता था।
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