भारत और पाकिस्तान में मिलाकर लगभग 1.75 अरब लोग रहते हैं. हमारे पास कवि भी हैं , राजनीतिज्ञ भी, सेठ भी, सैनिक भी और मेरे जैसे कुछ काम न करने वाले मौसमी विश्लेषक भी.
हथियार चाहे हम फ्रांस से खरीदें या चीन से, उनका संचालन हम स्वयं ही करते हैं.
इस बार जब मिसाइलें और ड्रोन उड़े तो वे जाकर टकराए मुरीदके, उधमपुर, बहावलपुर, अमृतसर, ऐसी जगहें जिनके नाम या तो हम नक्शों में देखते हैं या तो जिन्हें याद करके हमारे बुजुर्ग रोया करते थे.
जब धमकियां देकर, नारे लगाकर हमने इन हथियारों का प्रयोग करना शुरू किया तो किसी को कुछ नहीं पता था कि अब हम कहां रुकेंगे. लेकिन फिर हम रुक गए. लेकिन युद्ध विराम की घोषणा न तो दिल्ली से हुई और न ही इस्लामाबाद से, इसकी घोषणा हुई डीसी वॉशिंगटन से ...
वहां बैठे ट्रंप ने कहा कि मैंने दोनों देशों के नेताओं से बात कर ली है और वे तत्काल युद्धविराम के लिए तैयार हो गए हैं. इन्होंने बुद्धिमानी वाला कार्य किया है , इन्हें बधाई हो.
हमारे जैसे जो बाहर से नारे लगाते थे लेकिन अंदर से युद्ध से डरे हुए थे और जिन लोगों को ट्रंप पसंद भी नहीं थे , उन्होंने भी कहा कि ट्रंप ने अच्छा काम किया है.
अच्छी बात यदि कोई ट्रंप जैसा व्यक्ति भी करे तो उसे मान लेना चाहिए. लेकिन हमें यह अपमान बिलकुल भी महसूस नहीं हुआ कि हमारे पौने दो अरब लोगों में कोई दो लोग ऐसे बुद्धिमान नहीं थे , जो आपस का झगड़ा आपस में ही सुलझा लेते.
साथ ही यह भी ध्यान में आया कि ट्रंप के पास ऐसा कौन सा तरीका है कि दोनों देशों के नेता तुरंत सहमत हो गए.
पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि ट्रंप से रहा ही नहीं गया उन्होंने खुद ही कह दिया कि मैंने दोनों देशों के नेताओं को धमकी दी थी कि अगर आपने तुरंत यह संघर्ष नहीं रोका तो अमेरिका आपके साथ व्यापार करना बंद कर देगा. व्यापार बंद करने की धमकी सुनने के बाद दोनों देशों के नेता युद्धविराम पर सहमत हो गए.
अब हम बचपन से सुनते आए हैं कि लाठी रास्ते से भटके लोगों को भी सीधे रास्ते पर ले आती है , लेकिन अब पता चला कि व्यापार ही सबसे बड़ी लाठी है.
अगर सचमुच सात समंदर पार बैठे अमेरिका के साथ व्यापार बंद होने का इतना डर है तो आपकी तो सीमाएं जुड़ी हुई हैं , आप एक दूसरे के साथ भी व्यापार के बारे में सोचिए. करना चाहे मत, लेकिन सोच तो लीजिये .
यदि हम दो कौड़ी के खरीदे ड्रोन एक-दूसरे की ओर भेज सकते हैं तो आलू-प्याज भेजकर हमारी दुश्मनी कितनी बढ़ेगी? लेकिन हम यह बात जानते हैं कि हमारे जीवन में यह शत्रुता न तो ख़त्म हुई और न ही ख़त्म होती दिखाई देती है.
अब जब हमारे बच्चे बड़े हो जाएंगे तो वे भी इसी काम पर लग जाएंगे. तब तक हमारी जनसंख्या लगभग ढाई अरब तक तो पहुंच ही जायेगी.
बस प्रार्थना करें कि तब तक हम कोई ऐसे दो-चार बुद्धिमान बेटे-बेटियां पैदा कर लें , जो आपस के झगड़े आपस में ही सुलझा सकें. फिर हाथ में बंदूकें लेकर ट्रंप के फोन कॉल के इंतजार में न रहें कि अब हम युद्ध जारी रखें या फिर युद्ध विराम कर लें.
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