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ट्रंप की भारत पर सख़्ती की 'असली' वजह रूसी मीडिया तेल नहीं, कुछ और बता रहा

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image AFP via Getty Images भारत पर ट्रंप की सख़्ती की चर्चा रूसी मीडिया में भी हो रही है

डोनाल्ड ट्रंप ने जब इसी साल जनवरी में अमेरिका की कमान दूसरी बार संभाली, तो रूस पर उनका रुख़ बाइडन सरकार से अलग था.

कई बार अमेरिका ने यूक्रेन-रूस जंग पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का साथ दिया.

दूसरी ओर फ़रवरी में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की जब व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने पहुँचे, तो उनके बीच बहस हो गई.

उस समय ट्रंप ने आरोप लगाया था कि ज़ेलेंस्की शांति नहीं चाहते हैं और अगर वो समझौता नहीं करेंगे तो अमेरिका इस जंग से बाहर हो जाएगा.

ट्रंप ने ये दावा भी किया था कि यूक्रेन रूस के साथ जंग में जीत हासिल नहीं कर सकता है.

उस समय जानकारों को ऐसा लगा था कि भारत और रूस की दोस्ती से ट्रंप को कोई दिक़्क़त नहीं होगी.

लेकिन पिछले पाँच महीनों में चीज़ें तेज़ी से बदली हैं.

अब ट्रंप ने रूस से तेल ख़रीदने पर भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ़ दोगुना करते हुए 50 प्रतिशत कर दिया है.

रूस के मीडिया में भी इस बात पर बहस हो रही है कि क्या ट्रंप दबाव बनाकर भारत को रूस से दूर कर सकते हैं?

रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने 9 अगस्त को वहाँ के राजनीतिक विश्लेषक के सामने यह सवाल रखा था.

रूस की सुरक्षा परिषद में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य एंड्रयू सुशेनत्सोव ने कहा कि भारत ट्रंप के दबाव में अमेरिका की विदेश नीति की लाइन पर नहीं चल सकता है.

उन्होंने कहा कि अमेरिका की इस तरह की नीति भारत के मामले में नाकाम रही है. ऐसे में अमेरिका का यह दबाव लंबे समय तक नहीं रहेगा.

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तेल से आगे का खेल? image Getty Images

एंड्रयू सुशेनत्सोव ने तास से कहा, ''अहम बात यह है कि भारत के ख़िलाफ़ ट्रंप ने टैरिफ़ दोगुना करने का फ़ैसला उनके विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ के मॉस्को में राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात के पहले किया था. भारत रूस से तेल आयात कर रहा है, इसलिए अमेरिका ने टैरिफ़ दोगुना किया, यह असली कारण नहीं है. भारत पर अमेरिकी दबाव का कारण कुछ और है.''

एंड्रयू सुशेनत्सोव ने कहा, ''आबादी के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है. भारत तेज़ी से प्रगति कर रहा है. अमेरिका भारत को चीन से टकराव के मामले में रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है. ऐसे में अमेरिका चाहता है कि भारत उसका नेतृत्व स्वीकार करे और स्वतंत्र विदेश नीति का आग्रह छोड़ दे. लेकिन अमेरिका की यह चाहत इस रणनीति से पूरी नहीं होगी. इसलिए भारत पर अमेरिकी दबाव लंबे समय तक नहीं रह पाएगा.''

उन्होंने कहा, ''दबाव बनाना अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है और जब इससे कामयाबी नहीं मिलती है तो राष्ट्रपति अपनी जीत की घोषणा कर देते हैं और चुपचाप पहले के फ़ैसलों को बदल देते हैं. अमेरिका उकसाने के स्तर तक ट्रेड को ढाल बनाता है, जिसमें किसी समझौते की बहुत कम गुंज़ाइश होती है."

"ब्राज़ील में तो ट्रंप ने वहाँ के आंतरिक मामलों में दख़ल देना शुरू कर दिया. वहाँ के विपक्ष को ट्रंप समर्थन दे रहे हैं. इसका नतीजा यह होता है कि प्रतिरोध बढ़ने लगता है, प्रभावित देश जवाब देने का तरीक़ा खोजने लगते हैं.''

ट्रंप ने छह अगस्त को भारत पर अतिरिक्त 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी और सात अगस्त को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल रूस पहुँचे थे.

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अमेरिकी दबाव के बीच अजित डोभाल का रूस दौरा image AFP via Getty Images सात अगस्त को मॉस्को में राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात करते हुए भारत के एनएसए अजित डोभाल

अजित डोभाल की मुलाक़ात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी हुई थी.

डोभाल ने इसी दौरे में कहा था कि राष्ट्रपति पुतिन इस साल के अंत तक भारत आएँगे.

इसके बाद पीएम मोदी ने आठ अगस्त को राष्ट्रपति पुतिन से बात की और कहा कि रूसी राष्ट्रपति इस साल के अंत तक भारत के दौरे पर आएँगे.

रशिया टुडे (आरटी) ने भी सात अगस्त को एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति पुतिन इस साल के अंत तक नई दिल्ली जाएँगे और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर इस महीने के आख़िर में रूस आएँगे.

आरटी ने लिखा है, ''जब भारत पर रूस से तेल आयात बंद करने के लिए दबाव था, तब अजित डोभाल ने रूस का दौरा किया. भारत-रूस आर्थिक संबंध और मज़बूत करने पर बात कर रहे हैं. इसमें रेयर अर्थ, एयरक्राफ़्ट पार्ट्स के उत्पादन और रेलवे में सहयोग बढ़ाने पर बात हो रही है."

"भारतीय मीडिया में यह भी कहा जा रहा है कि डोभाल ने रूस से और अधिक एस-400 सिस्टम ख़रीदने के लिए बात की है. भारत के पास अभी तीन एस-400 मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम हैं. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इनका इस्तेमाल किया था.''

रूसी मीडिया समूह रोशिया सेगोद्नया के महानिदेशक दिमित्री किसेलेव ने पिछले हफ़्ते गुरुवार को स्पूतनिक न्यूज़ से कहा था, ''भारत और रूस की दोस्ती दोनों देशों के लिए बहुत ज़रूरी है. अमेरिकी अल्टीमेटम के मामले में भी भारत का रुख़ तार्किक और संतुलित रहा. रूस से संबंधों के मामले में भारत किसी के दबाव में नहीं आता है. भारत और रूस के आम लोग भी एक दूसरे पर भरोसा करते हैं.''

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रूस नहीं भारत को सज़ा? image Getty Images पश्चिम के मीडिया में भी कहा जा रहा है कि ट्रंप रूस के बदले भारत को सज़ा दे रहे हैं

लीग टर्नर 2008 से 2012 तक यूक्रेन में ब्रिटेन के राजदूत रहे हैं.

टर्नर ने 11 अगस्त को मॉस्को टाइम्स में पुतिन और ट्रंप की आगामी शिखर वार्ता पर एक विश्लेषण लिखा है.

टर्नर ने मॉस्को टाइम्स में लिखा है, ''पहले कहा जा रहा था कि अमेरिका भारत के ख़िलाफ़ 100 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाएगा, लेकिन अभी 50 फ़ीसदी टैरिफ़ की घोषणा की है. यह टैरिफ़ भी 27 अगस्त के पहले लागू नहीं होगा. इससे पहले 15 अगस्त को राष्ट्रपति पुतिन और ट्रंप की मुलाक़ात होनी है. भारत के अलावा अभी किसी और देश को रूसी तेल ख़रीदने के लिए निशाना नहीं बनाया गया है.''

टर्नर को लगता है कि यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई पर भारत को सज़ा देना अमेरिकी विदेश नीति में यूटर्न की तरह है, क्योंकि इससे पहले तो ट्रंप यूक्रेन के राष्ट्रपति को तानाशाह कह रहे थे.

ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद रूस का पक्ष लिया था. यहाँ तक अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने कहा था कि यूक्रेन की सीमा 2014 से पहले जैसी थी, उसे हासिल नहीं कर पाएगा और न ही नेटो में शामिल हो सकता है.

टर्नर ने लिखा है, ''अमेरिका पुतिन-ट्रंप शिखर वार्ता में यूक्रेन के हितों की उपेक्षा करके भी कोई समझौता कर सकता है. ट्रंप ने रूस के ख़िलाफ़ नए टैरिफ़ लगाने के लिए कुछ भी नहीं किया है. लेकिन ऐसी कई चीज़ें हैं, जो अमेरिका कर सकता था. अमेरिका ने रूसी तेल टैंकर्स पर कोई कार्रवाई नहीं की. अमेरिका ने उन बैंकों और रिफ़ाइनरी पर कोई अलग से प्रतिबंध नहीं लगाया, जो रूसी तेल के व्यापार में मदद कर रहे हैं.''

टर्नर ने लिखा है, ''अब तो आशंका इस बात की है कि ट्रंप उस समझौते पर सहमत हो सकते हैं, जिसमें यूक्रेन को अपनी ज़मीन गँवानी पड़े. अगर यूक्रेन ऐसा करने से इनकार करेगा, तो अमेरिका सहमत कराने के लिए दबाव डालेगा."

"जनवरी में ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका ऐसा कई बार कर चुका है. अमेरिका ने यूक्रेन में हथियारों की आपूर्ति में कटौती की और ख़ुफ़िया सूचना साझा करने की प्रक्रिया को भी बाधित किया. दूसरी तरफ़ रूस पर कोई दबाव नहीं डाला.''

'काम नहीं करेगा दबाव' image Getty Images रूसी मीडिया में कहा जा रहा है कि अमेरिका का दबाव भारत पर काम नहीं करेगा

भारत के ख़िलाफ़ ट्रंप के टैरिफ़ पर यूरोसर्बिया डॉट नेटके संपादक कॉन्स्टैन्टिन वोन होफ़मेइस्टर ने सात अगस्त को एक लेख लिखा था.

वोन ने लिखा है, ''भारत और रूस के बीच आर्थिक संबंध बहुत गहरे हो चुके हैं. जो द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में महज़ 13 अरब डॉलर का था, वो वित्तीय वर्ष 2024-25 में बढ़कर 68 अरब डॉलर तक पहुँच गया."

"भारत रूस से तेल और उर्वरक भारी मात्रा में आयात कर रहा है. इसी का नतीजा है कि रूस भारत के शीर्ष के करोबारी साझेदारों में से एक हो गया है. भारत अभी कुल कच्चे तेल के आयात में से रूस से 35 से 40 प्रतिशत आयात कर रहा है. भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में 50 अरब डॉलर का ऊर्जा आयात किया है.''

वोन ने लिखा है, ''रूस और भारत द्विपक्षीय व्यापार में डॉलर पर निर्भरता ख़त्म कर रहे हैं. पश्चिम की वित्तीय व्यवस्था को बाइपास कर दोनों देश व्यापार कर रहे हैं. क़रीब 90 प्रतिशत द्विपक्षीय व्यापार स्थानीय मुद्राओं में हो रहा है. अब व्यापार की नदी मॉस्को से नई दिल्ली की ओर बह रही है. अब दोनों देशों को स्विफ़्ट कॉरिडोर की ज़रूरत नहीं है.''

रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव अमेरिका के रुख़ की अक्सर आलोचना करते रहते हैं.

28 जुलाई को एक्स पर एक पोस्ट में मेदवेदेव ने लिखा था, ''ट्रंप रूस के साथ अल्टीमेटम गेम खेल रहे हैं: 50 दिन या 10...ट्रंप को दो चीज़ें याद रखनी चाहिए:

1. रूस इसराइल नहीं है और यहाँ तक कि ईरान भी नहीं.

2. हर नया अल्टीमेटम एक धमकी है और एक क़दम युद्ध की ओर है. यूक्रेन और रूस के बीच नहीं बल्कि उनके ख़ुद के देश से. नींद में रहने वाली बाइडन की राह पर ट्रंप ना बढ़ें.''

मेदवेदेव की इस भाषा पर ट्रंप ने सख़्त आपत्ति जताई थी और उन्हें रूस का नाकाम राष्ट्रपति कहा था.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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