भारत किसी के आगे झुकने वाला नहीं, इसका ताजा सबूत सामने आया है. आपको अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पिछले महीने का वो बयान याद होगा, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है. अब जमीन पर हकीकत देखिए, आंकड़े कुछ और कहानी कह रहे हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने न सिर्फ रूस से तेल लेना जारी रखा, बल्कि अक्टूबर में तो इम्पोर्ट और बढ़ गया. और दिलचस्प बात यह है कि अब भारत ने ताजिकिस्तान वाले रूट को भी एक्टिवेट कर दिया है, ताकि तेल सीधे रूस से न होकर एक वैकल्पिक रास्ते से आए.
शिप-ट्रैकिंग एजेंसी Kpler और OilX के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में भारत ने 1.48 मिलियन बैरल प्रति दिन तेल रूस से खरीदा जबकि सितंबर में यह सिर्फ 1.43 से 1.44 मिलियन था. साफ है कि भारत ने न सिर्फ रूस से तेल खरीद बढ़ाई है बल्कि तमाम दावों के बावजूद ठोस बढ़त नजर आ रही है. और यह सब तब, जब अमेरिका रूस पर नए प्रतिबंध लगाकर दुनिया भर को दबाव में ला रहा था कि कोई भी रूस से तेल न खरीदे. Kpler के एनालिस्ट सुमित रितोलिया ने साफ कहा, रूसी तेल का इम्पोर्ट नवंबर 21 तक तो घटेगा नहीं, उसके बाद ही असर दिख सकता है. इसका मतलब साफ है कि ट्रंप के बयान और भारत की जमीनी रणनीति के बीच का फर्क अभी भी साफ नजर आ रहा है.
रूस से तेल क्यों नहीं छोड़ा भारत ने?
भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत बड़ी हैं. देश रोजाना करीब 5 मिलियन बैरल से ज्यादा तेल इम्पोर्ट करता है और जब रूस इतना तेल सस्ता दे रहा हो, तो कौन-सा देश ऐसे मौके को ठुकराएगा? 2022 में जब यूक्रेन पर हमला हुआ, तब पश्चिमी देशों ने रूस को सख्त सज़ा दी. लेकिन भारत ने साफ कहा था, हम अपनी जनता के हित में फैसले करेंगे. इस फैसले का मतलब था कि जहां से भी सस्ता तेल मिले, वहीं से खरीदो. और हुआ भी यही. रूस कुछ ही महीनों में भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन गया.
अब आप सोच रहे होंगे कि जब भारत रूस से तेल ले ही रहा है, तो ताजिकिस्तान का नाम क्यों? असल में, अमेरिका ने अक्टूबर में रूस की दो बड़ी ऑयल कंपनियों Rosneft और Lukoil पर नए प्रतिबंध लगा दिए. भारत की कुछ कंपनियों ने नए ऑर्डर रोक दिए ताकि अमेरिकी दबाव से बचा जा सके. रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अब खेल यहीं हुआ. भारत ने रूस से सीधे खरीदारी को थोड़ा घुमा दिया है. यानी अब डील्स थर्ड पार्टी या मध्य एशिया के ट्रांजिट रूट्स के जरिए हो रही हैं. इनमें ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे नाम सामने आ रहे हैं. इस रणनीति से भारत के पास दो फायदे हैं. पहला, अमेरिकी प्रतिबंधों से बचाव हो सकेगा और दूसरा तेल की सप्लाई में कमी नहीं आएगी. यानी तेल वही है, बस रास्ता नया हो गया है.
अमेरिका के लिए मुश्किल
ट्रंप का बयान दरअसल राजनीतिक भी था. वह रूस पर अपनी सख्ती दिखाना चाहते थे और साथ ही भारत के साथ ऊर्जा समीकरण को लेकर दबाव बनाना भी. लेकिन भारत ने हर बार यही कहा, हम अमेरिका के दोस्त हैं, पर अपने हितों से समझौता नहीं करेंगे. भारत के लिए यह केवल कूटनीति नहीं, अर्थशास्त्र है. रूस से मिलने वाला तेल सस्ता पड़ता है. कभी-कभी 10 से 15 डॉलर प्रति बैरल तक कम कीमत होती है. इससे न सिर्फ सरकार का आयात बिल घटता है, बल्कि आम जनता को भी पेट्रोल-डीजल में थोड़ी राहत मिलती है.
ताजिकिस्तान रूट क्या करेगा?
इस नए रूट को लेकर जानकार कह रहे हैं कि भारत सीधे रूस से डील किए बिना भी वही तेल हासिल कर सकता है, बस उसे अलग रास्ते से लाया जाएगा. यानी रूस से तेल निकलेगा, मध्य एशिया के देशों से गुजरेगा और फिर भारत पहुंचेगा. इसे आप ऐसे समझिए कि जैसे किसी रेस्टोरेंट ने वही डिश सर्व करना जारी रखा, बस किचन बदल गया.
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