New Delhi, 13 सितंबर . अगर बचपन में आपके सारे दोस्त काल्पनिक थे, तो हो सकता है कि आपकी परेशानियां अभी खत्म न हुई हों. शोध से पता चला है कि बचपन में अकेलापन बड़े होने पर कई समस्याओं का कारण बन सकता है—खासकर जब बात मेंटल हेल्थ की हो.
हाल ही में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि अकेलेपन की ये भावनाएं सेहत को भी प्रभावित कर सकती हैं.
जेएएमए नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि अकेलेपन से ग्रस्त बच्चों के वयस्क होने पर कोग्नेटिव डिक्लाइन और मनोभ्रंश का अनुभव करने की संभावना अधिक होती है. ये स्थिति तब भी बनी रह सकती है जब वे बाद के वर्षों में अकेले न रहे हों.
ये निष्कर्ष विशेष रूप से चिंताजनक हैं क्योंकि जेनरेशन जी के 80% लोग खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं – वरिष्ठ नागरिकों की तुलना में दोगुना – जबकि जेनरेशन अल्फा के सदस्य अकेलेपन की इस महामारी के बीच नए दोस्त बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
इस नवीनतम अध्ययन में, बचपन के अकेलेपन को 17 वर्ष की आयु से पहले अकेलेपन की लगातार भावनाओं और घनिष्ठ मित्रता के अभाव के रूप में परिभाषित किया गया है.
शोध टीम के अनुसार, ये भावनाएं अनुपयुक्त परिस्थितियों से निपटने के तरीकों को जन्म दे सकती हैं, और इसके प्रतिकूल प्रभाव वयस्कता तक बने रह सकते हैं.
अध्ययन के लेखकों ने कहा, “अकेलेपन का अनुभव करने वाले बच्चे अक्सर भावनात्मक तनाव को कम करने के लिए अनहेल्दी व्यवहार अपनाते हैं… ये व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक कारक तंत्रिका-विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, जो बाद के जीवन में संज्ञानात्मक प्रदर्शन को प्रभावित करता है.”
इसके अलावा, बचपन का अकेलापन मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जैसे कोर्टिसोल का उच्च स्तर, सहानुभूति तंत्रिका तंत्र की अतिसक्रियता, हिप्पोकैम्पस को नुकसान, ऑक्सीडेटिव तनाव और प्रतिरक्षा प्रणाली का असंयम.
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केआर/
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