लाइव हिंदी खबर :- भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वैश्विक मंच पर जलवायु न्याय प्रौद्योगिकी और अंतरराष्ट्रीय सुधारो पर जोर देते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि पहले ग्लोबल नॉर्थ के औचित्य के बजाय ग्लोबल साउथ (ऐसे देशों का एक समूह है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से कम विकसित माने जाते हैं और जो मुख्य रूप से भौगोलिक रूप से दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है, हालांकि इसमें कुछ उत्तरी गोलार्ध के देश भी शामिल हो सकते हैं, जैसे चीन और भारत, यह शब्द आर्थिक असमानताओं को दर्शाता है) की जरूरतों की पूर्ति करें।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और जलवायु न्याय जैसे क्षेत्रों में ऐसी नीतियां और कार्यक्रम सामने आने चाहिए, जो विकासशील देशों के लिए उपयोगी हों। जयशंकर के अनुसार ग्लोबल साउथ को लंबे समय से उन नीतियों का सामना करना पड़ा है, जो विकसित देशों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। अब इस असंतुलन को दूर करना आवश्यक है। विदेश मंत्री ने उभरती प्रौद्योगिकियों खासकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता की संभावनाओ पर चर्चा की और कहा कि यह तकनीक मानवता के लिए बड़े अवसर पैदा कर सकती है।
हालांकि इसके साथ जुड़ी चुनौतियों पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, ताकि इसका लाभ समान रूप से सभी देशों तक पहुंच सके। जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया 20वीं सदी की संस्थाओं से नहीं चल सकती। यदि बहुपक्षीय ढांचे को प्रासंगिक बनाए रखना है, तो उसमें संरचनात्मक बदलाव अनिवार्य हैं. जयशंकर का साफ संदेश था कि ग्लोबल साउथ की आवाज को अंतरराष्ट्रीय नीति और निर्णयों में प्रमुख स्थान मिलना चाहिए और विश्व व्यवस्था को और अधिक न्यायपूर्ण व समावेशी बनाया जाना चाहिए।
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