राजद नेता तेजस्वी यादव ने भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) पर आरोप लगाया कि वह एक ही विधानसभा क्षेत्र के अपने नेताओं को दोहरे ईपीआईसी (मतदाता पहचान पत्र) नंबर जारी करके भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का पक्ष ले रहा है, जिसका उद्देश्य कथित तौर पर विपक्षी वोटों को दबाना है। पटना में बोलते हुए, यादव ने दावा किया कि मुजफ्फरपुर की भाजपा महापौर निर्मला देवी और उनके दो देवरों के पास एक ही निर्वाचन क्षेत्र में दो-दो ईपीआईसी नंबर हैं, और इसे चुनावों में हेरफेर करने की एक जानबूझकर की गई रणनीति बताया।
मतदाता सूची में हेरफेर के दावे
यादव ने आगे आरोप लगाया कि चुनाव आयोग आगामी विधानसभा चुनावों के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान गुजरात के भीखूभाई दलसानिया जैसे गैर-निवासियों के नाम बिहार की मतदाता सूची में जोड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा कार्यकर्ता दलसानिया ने 2024 में गुजरात में मतदान किया था, लेकिन अब उन्हें पटना के मतदाता के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिससे चुनाव आयोग की निगरानी पर सवाल उठता है। यादव ने 2020 के बिहार चुनावों में चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का भी आरोप लगाया, जिसमें उन्होंने 12,000 वोटों के मामूली अंतर का हवाला दिया, जिससे विपक्ष को 10 से ज़्यादा सीटें गंवानी पड़ीं।
भाजपा और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा, जिन पर भी इसी तरह के दोहरे मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी) के आरोप लगे हैं, ने 10 अगस्त को स्पष्ट किया कि उन्होंने 2024 में अपनी मतदाता पहचान पत्र बांकीपुर से लखीसराय स्थानांतरित करने के लिए आवेदन किया था, लेकिन इसे हटाने की प्रक्रिया को अस्वीकार कर दिया गया। उन्होंने किसी भी गड़बड़ी से इनकार करते हुए 14 अगस्त तक चुनाव आयोग के नोटिस का जवाब देने का वादा किया। चुनाव आयोग ने इन दावों पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, जिसके कारण यादव ने पारदर्शिता की कमी के लिए इसकी आलोचना की है।
राजनीतिक निहितार्थ
यादव के आरोप, जिनमें चुनाव आयोग के पक्षपात और सीबीआई व ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के पिछले दुरुपयोग के दावे शामिल हैं, बिहार चुनावों से पहले चुनावी ईमानदारी की जाँच को तेज़ करते हैं, जिससे मतदाता सूची की सटीकता और निष्पक्षता को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
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