चीन में आयोजित ‘विक्ट्री डे परेड’ में विश्व के कई प्रमुख नेताओं ने हिस्सा लिया, जिनमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी शामिल थे। इस भव्य समारोह का आयोजन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर विजय की 78वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में किया गया। परंतु इस मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति ने कूटनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
परेड में शामिल हुए कौन-कौन?
चीनी राजधानी बीजिंग में आयोजित इस परेड में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शिरकत की। इसके अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने भी चीन के इस विशेष समारोह में भाग लेकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। अन्य कई देशों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर चीन गए।
पीएम मोदी क्यों नहीं गए?
भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया कि पीएम मोदी की व्यस्तता के कारण वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके। इसके साथ ही यह भी बताया गया कि भारत और चीन के बीच वर्तमान समय में कूटनीतिक एवं सीमा विवाद के चलते भारत ने इस समारोह में अपनी उपस्थिति सीमित रखने का निर्णय लिया है। सूत्रों की मानें तो भारत ने इसे एक ‘सावधानीपूर्ण कूटनीतिक निर्णय’ माना है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और रणनीतिक हितों का ध्यान रखा जा सके।
कूटनीतिक दृष्टिकोण और भारत का रुख
पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और अन्य मसलों ने संबंधों को प्रभावित किया है। ऐसे में भारत के लिए चीन की इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटना में शामिल होना चुनौतीपूर्ण था। भारत ने चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखने के साथ-साथ अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि रखा है। इस संदर्भ में यह निर्णय लेना उचित समझा गया कि प्रधानमंत्री की उपस्थिति से कूटनीतिक तनाव बढ़ सकता है।
क्या भारत-चीन संबंधों पर पड़ेगा असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की गैरमौजूदगी से चीन के साथ संबंधों में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। दोनों देशों के बीच संवाद जारी है और द्विपक्षीय मसलों को बातचीत से सुलझाने की प्रक्रिया चल रही है। भारत का यह कदम ‘संयम’ और ‘सावधानी’ के रूप में देखा जा रहा है।
विपक्ष और मीडिया की प्रतिक्रिया
भारतीय विपक्षी दलों और मीडिया ने इस मामले को लेकर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। कई विश्लेषकों ने प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति को ‘कूटनीतिक संदेश’ बताया, जबकि कुछ ने इसे ‘संधिभंग’ की संभावना भी माना। सरकार ने हालांकि यह साफ किया है कि यह एक व्यावहारिक निर्णय था, जो भारत के हित में लिया गया।
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