लेखक: ज्योतिरादित्य सिंधिया
पूर्वोत्तर भारत मेरे लिए केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं बल्कि एक जीवंत अनुभूति है, भारत की आत्मा का वह कोना है जहां संस्कृति, संवेदना और संकल्प साथ-साथ सांस लेते हैं।
जीवित जड़ों का पुल: असम और मेघालय की मेरी हालिया यात्राओं ने यह अनुभव कराया कि पूर्वोत्तर केवल भौगोलिक विस्तार नहीं, बल्कि भारत की जीवंत आत्मा का प्रतिबिंब है। मेघालय के रंगथ्यलियांग में जीवित जड़ों के पुल पर चलना मेरे लिए समय और प्रकृति के बीच संवाद जैसा था। मैंने जिस पुल को पार किया, वह लगभग 175 फीट लंबा और 6 फीट चौड़ा था और पूरी तरह से प्राचीन रबर के पेड़ों की जड़ों से बुना हुआ।
पृथ्वी की आत्मा: इसी तरह जब मैं 4200 वर्ष पुरानी मेघालयन एज की मावमलूह गुफा में पहुंचा तो लगभग तीन किलोमीटर की यात्रा ने मुझे गहन मौन और शांति का अनुभव कराया। 4,503 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा पृथ्वी की आत्मा का साक्षात्कार कराती है। 18 वर्ष की आयु से गुफाओं में जा रहे हमारे गाइड बॉब रायन की आयु आज 81 वर्ष हो चुकी है और उनके अनुभव ने यह सिखाया कि ज्ञान और जीवन का संतुलन उम्र नहीं देखता है।
दो मित्रों का सपना: पूर्वोत्तर की मोहक और आश्चचर्यचकित करने वाली प्रकृति को निहारते हुए मैं सोहरा (चेरापूंजी) पहुंचा, जहां पीएम-डिवाइन के अंतर्गत ₹233 करोड़ की इंटीग्रेटेड टूरिज्म सर्किट परियोजना का शिलान्यास करते समय मेरे मन में विचार था कि विकास का अर्थ केवल निर्माण नहीं, बल्कि संरक्षण और संवर्धन भी है। यह सपना मैंने और मेरे मित्र, मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने मिलकर देखा और इसे हकीकत में बदलने के लिए साथ मिलकर इसे संवारा है।
केवल उपमा नहीं: प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर विकास मंत्रालय एक्ट ईस्ट, एक्ट फास्ट और एक्ट फर्स्ट को ध्येय वाक्य मानकर भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में लगातार विकास, रोजगार, पर्यटन और ट्रेड के नए आयाम स्थापित कर रहा है। पूर्वोत्तर की संस्कृति इसकी सबसे बड़ी ताकत है। प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर को 'अष्टलक्ष्मी' कहते हैं, तो यह केवल उपमा नहीं, बल्कि आठ राज्यों का सम्मान है, जो भारत की प्रगति के आठ दीप हैं।
भविष्य का ध्रुवतारा: पूर्वोत्तर भविष्य का ध्रुवतारा है। जब अरुणाचल में पहली सूर्योदय की किरण उगती है, वह पूरे देश को आलोकित करती है। जब नगालैंड की ठंडी हवा चलती है, या मेघालय में एबोड ऑफ क्लाउड्स का अनुभव होता है, तो ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग में कदम रखा हो। यही अनुभव हमें याद दिलाता है कि यहां का हर प्रयास, हर सपना और हर उपलब्धि हमें याद दिलाती है कि भारत का उज्ज्वल भविष्य इसी क्षेत्र के ध्रुवतारे में चमक रहा है।
(लेखक पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मामलों के केंद्रीय मंत्री हैं)
पूर्वोत्तर भारत मेरे लिए केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं बल्कि एक जीवंत अनुभूति है, भारत की आत्मा का वह कोना है जहां संस्कृति, संवेदना और संकल्प साथ-साथ सांस लेते हैं।
जीवित जड़ों का पुल: असम और मेघालय की मेरी हालिया यात्राओं ने यह अनुभव कराया कि पूर्वोत्तर केवल भौगोलिक विस्तार नहीं, बल्कि भारत की जीवंत आत्मा का प्रतिबिंब है। मेघालय के रंगथ्यलियांग में जीवित जड़ों के पुल पर चलना मेरे लिए समय और प्रकृति के बीच संवाद जैसा था। मैंने जिस पुल को पार किया, वह लगभग 175 फीट लंबा और 6 फीट चौड़ा था और पूरी तरह से प्राचीन रबर के पेड़ों की जड़ों से बुना हुआ।
पृथ्वी की आत्मा: इसी तरह जब मैं 4200 वर्ष पुरानी मेघालयन एज की मावमलूह गुफा में पहुंचा तो लगभग तीन किलोमीटर की यात्रा ने मुझे गहन मौन और शांति का अनुभव कराया। 4,503 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा पृथ्वी की आत्मा का साक्षात्कार कराती है। 18 वर्ष की आयु से गुफाओं में जा रहे हमारे गाइड बॉब रायन की आयु आज 81 वर्ष हो चुकी है और उनके अनुभव ने यह सिखाया कि ज्ञान और जीवन का संतुलन उम्र नहीं देखता है।
दो मित्रों का सपना: पूर्वोत्तर की मोहक और आश्चचर्यचकित करने वाली प्रकृति को निहारते हुए मैं सोहरा (चेरापूंजी) पहुंचा, जहां पीएम-डिवाइन के अंतर्गत ₹233 करोड़ की इंटीग्रेटेड टूरिज्म सर्किट परियोजना का शिलान्यास करते समय मेरे मन में विचार था कि विकास का अर्थ केवल निर्माण नहीं, बल्कि संरक्षण और संवर्धन भी है। यह सपना मैंने और मेरे मित्र, मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने मिलकर देखा और इसे हकीकत में बदलने के लिए साथ मिलकर इसे संवारा है।
केवल उपमा नहीं: प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर विकास मंत्रालय एक्ट ईस्ट, एक्ट फास्ट और एक्ट फर्स्ट को ध्येय वाक्य मानकर भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में लगातार विकास, रोजगार, पर्यटन और ट्रेड के नए आयाम स्थापित कर रहा है। पूर्वोत्तर की संस्कृति इसकी सबसे बड़ी ताकत है। प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर को 'अष्टलक्ष्मी' कहते हैं, तो यह केवल उपमा नहीं, बल्कि आठ राज्यों का सम्मान है, जो भारत की प्रगति के आठ दीप हैं।
भविष्य का ध्रुवतारा: पूर्वोत्तर भविष्य का ध्रुवतारा है। जब अरुणाचल में पहली सूर्योदय की किरण उगती है, वह पूरे देश को आलोकित करती है। जब नगालैंड की ठंडी हवा चलती है, या मेघालय में एबोड ऑफ क्लाउड्स का अनुभव होता है, तो ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग में कदम रखा हो। यही अनुभव हमें याद दिलाता है कि यहां का हर प्रयास, हर सपना और हर उपलब्धि हमें याद दिलाती है कि भारत का उज्ज्वल भविष्य इसी क्षेत्र के ध्रुवतारे में चमक रहा है।
(लेखक पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मामलों के केंद्रीय मंत्री हैं)
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