शादाब रिज़वी, रामपुर: खुद की सियासी जमीन (घरौंदा) पर कब्जा करने वाले रामपुर के सांसद और दिल्ली की पार्लियामेंट स्ट्रीट के मस्जिद के इमाम मोहिब्दुल्ला नदवी से समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां की नाराजगी कम नहीं हुई हैं। आजम को जैसे ही इस बात की मंगलवार को भनक लगी थी कि अखिलेश यादव के साथ रामपुर के सांसद नदवी भी उनसे मिलने आएंगे, उन्होंने तभी ऐलान कर दिया था कि मैं सिर्फ अखिलेश से मिलूंगा और अखिलेश मुझसे। सिर्फ हम दोनों की मुलाकात होगी।
ये पड़ा था असर...
इसका असर ये हुआ कि रामपुर आने के लिए दिल्ली से लखनऊ पहुंचे सांसद नदवी अखिलेश यादव के साथ चार्टर प्लेन से बरेली तक आए जरूर लेकिन आजम के बदले तेवर और तल्ख नाराजगी के चलते नदवी को बरेली में ही रुकना पड़ा। वह रामपुर से 70 किलोमीटर दूर ही रुक गए। अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि नदवी की मौजूदगी से उनके (आजम और अखिलेश) रिश्ते में कड़वाहट बढ़े, जिसे वह कम करने के लिए रामपुर आ रहे हैं।
ये है आजम की नदवी से नाराजगी की वजह...
दरअसल, जानकारी आजम की नदवी से नाराजगी की एक बड़ी वजह ये मान रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद और बाद में भी रामपुर के सांसद मोहिबुदुल्ला नदवी ने एक बयान उस वक्त दिया था जब आजम खां जेल में थे। नदवी ने आजम खां के बारे में कहा था कि वह सुधार गृह गए है सुधर कर आएंगे। इन अल्फ़ाज़ से आजम और नदवी में दूरी ज्यादा बढ़ गई। सांसद बनने के बाद भी नदवी कभी आजम के परिवार से नहीं मिले।
आजम की पत्नी तंजीन फातिमा और बेटा अब्दुल्ला जेल से रिहा होकर भी आए और लगातार रामपुर में रह रहे है, लेकिन कभी रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश नदवी ने पहल कर नहीं की। इसी की नजीता है कि आज मुलाकात से आजम ने इनकार कर दिया। नाराजगी किस कदर है कि मीडिया के पूछने पर आजम ने साफ कहा था कि वह नदवी को नहीं जानते। उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई। वह प्रतिष्ठित मस्जिद के इमाम हैं। एहतराम के काबिल हैं। मगर मेरा उनसे कोई ताल्लुक नहीं हैं।
कारण ये भी कम नहीं....
सियासी जानकार मान रहे हैं कि अखिलेश यादव बाखुबी जानते हैं कि नदवी से नाराजगी की असल वजह ये भी है कि रामपुर आजम का सियासी घरौंदा है। उनकी इस घरौंदे पर नदवी ने कब्जा कर लिया। आजम ऐसा कभी नहीं चाहते थे। वह रणनीति के तहत 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद के जेल में रहते और परिवार के किसी सदस्य को चुनाव नहीं लड़ाने की मजबूरी के चलते अखिलेश यादव को रामपुर से चुनाव लड़ने की दावत दे चुके थे।
उन्हें पता था कि अखिलेश के रहते जब चाहेंगे वह अपने सियासी घरौंदा वापस ले सकते है। किसी बाहरी आदमी के आने से दिक्कत होगी। अखिलेश भी आजम की इस नाराजगी को भांप कर ही रामपुर आए थे। तभी उन्होंने आजम को इज्जत और अहमियत देने में कोई कमी नहीं छोड़ी। अपने और पार्टी के लिए उनके सियासी वसूद को सपा का पार्टी के दरख़्त (पेड़) बता गए। और कह गए कि इस पेड़ का साया हमेशा हम लोगों के साथ रहा है। घर पहुंचे आजम का हाथ थाम कर पहुंचे। फोटो खिलवाए।
मुलाकात पूरी कर लौटे तो X पर फोटो के साथ एक शेर लिखा-`क्या कहें भला उस मुलाक़ात की दास्तान, जहां बस जज़्बातों ने खामोशी से बात की`। सियासी जानकार इसके गहरे मतलब निकल रहे हैं। कुल मिलाकर अखिलेश ने अपनी रामपुर में आमद से आजम खां की नाराजगी को दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों नेताओं की बाड़ी लैंग्वेज भी सकारात्मक ही दिख रही थी।
ये पड़ा था असर...
इसका असर ये हुआ कि रामपुर आने के लिए दिल्ली से लखनऊ पहुंचे सांसद नदवी अखिलेश यादव के साथ चार्टर प्लेन से बरेली तक आए जरूर लेकिन आजम के बदले तेवर और तल्ख नाराजगी के चलते नदवी को बरेली में ही रुकना पड़ा। वह रामपुर से 70 किलोमीटर दूर ही रुक गए। अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि नदवी की मौजूदगी से उनके (आजम और अखिलेश) रिश्ते में कड़वाहट बढ़े, जिसे वह कम करने के लिए रामपुर आ रहे हैं।
ये है आजम की नदवी से नाराजगी की वजह...
दरअसल, जानकारी आजम की नदवी से नाराजगी की एक बड़ी वजह ये मान रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद और बाद में भी रामपुर के सांसद मोहिबुदुल्ला नदवी ने एक बयान उस वक्त दिया था जब आजम खां जेल में थे। नदवी ने आजम खां के बारे में कहा था कि वह सुधार गृह गए है सुधर कर आएंगे। इन अल्फ़ाज़ से आजम और नदवी में दूरी ज्यादा बढ़ गई। सांसद बनने के बाद भी नदवी कभी आजम के परिवार से नहीं मिले।
आजम की पत्नी तंजीन फातिमा और बेटा अब्दुल्ला जेल से रिहा होकर भी आए और लगातार रामपुर में रह रहे है, लेकिन कभी रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश नदवी ने पहल कर नहीं की। इसी की नजीता है कि आज मुलाकात से आजम ने इनकार कर दिया। नाराजगी किस कदर है कि मीडिया के पूछने पर आजम ने साफ कहा था कि वह नदवी को नहीं जानते। उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई। वह प्रतिष्ठित मस्जिद के इमाम हैं। एहतराम के काबिल हैं। मगर मेरा उनसे कोई ताल्लुक नहीं हैं।
कारण ये भी कम नहीं....
सियासी जानकार मान रहे हैं कि अखिलेश यादव बाखुबी जानते हैं कि नदवी से नाराजगी की असल वजह ये भी है कि रामपुर आजम का सियासी घरौंदा है। उनकी इस घरौंदे पर नदवी ने कब्जा कर लिया। आजम ऐसा कभी नहीं चाहते थे। वह रणनीति के तहत 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद के जेल में रहते और परिवार के किसी सदस्य को चुनाव नहीं लड़ाने की मजबूरी के चलते अखिलेश यादव को रामपुर से चुनाव लड़ने की दावत दे चुके थे।
उन्हें पता था कि अखिलेश के रहते जब चाहेंगे वह अपने सियासी घरौंदा वापस ले सकते है। किसी बाहरी आदमी के आने से दिक्कत होगी। अखिलेश भी आजम की इस नाराजगी को भांप कर ही रामपुर आए थे। तभी उन्होंने आजम को इज्जत और अहमियत देने में कोई कमी नहीं छोड़ी। अपने और पार्टी के लिए उनके सियासी वसूद को सपा का पार्टी के दरख़्त (पेड़) बता गए। और कह गए कि इस पेड़ का साया हमेशा हम लोगों के साथ रहा है। घर पहुंचे आजम का हाथ थाम कर पहुंचे। फोटो खिलवाए।
मुलाकात पूरी कर लौटे तो X पर फोटो के साथ एक शेर लिखा-`क्या कहें भला उस मुलाक़ात की दास्तान, जहां बस जज़्बातों ने खामोशी से बात की`। सियासी जानकार इसके गहरे मतलब निकल रहे हैं। कुल मिलाकर अखिलेश ने अपनी रामपुर में आमद से आजम खां की नाराजगी को दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों नेताओं की बाड़ी लैंग्वेज भी सकारात्मक ही दिख रही थी।
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