नई दिल्ली : ...एक और बस में लगी आग। इस बार यह हादसा जयपुर से 50 किलोमीटर दूर मनोहरपुर इलाके में हुआ। जहां डबल डेकर स्लीपर बस में आग लग गई। कारण बस की छत पर नियमों के खिलाफ रखी बाइक, गैस सिलिंडर और अन्य सामान। जो की ऊपर से गुजर रही बिजली की हाईटेंशन लाइन से टच हो गया। हादसे में कम से कम दो लोगों की मौत हो गई। मंगलवार को ही दिल्ली एयरपोर्ट के टी-3 पर भी एयर इंडिया सेट्स की एक बस में आग लगी। बसों में आग लगने की अधिकतर घटनाएं स्लीपर एसी बसों में हो रही हैं। जो चलते-फिरते 'मौत के ताबूत' में बदल रही हैं। लोगों को बचने का बेहद कम मौका मिल पा रहा है।
हादसों के कारण में एक्सपर्ट ने बसों का फाल्टी डिजाइन,शॉर्ट सर्किट होना, यात्री बसों में माल ढोना, छतों पर भी ऊंचाई तक लगेज भरना, नियमों को ताक पर रखना, क्षमता से अधिक बैठने और सोने के लिए सीटें बनवाना, ड्राइवरों की आधी-अधूरी ट्रेनिंग और लोकल बॉडी बिल्डरों द्वारा बसों में कम गुणवत्ता का माल लगाकर बस को बनाना आदि बताया। साथ ही अधिकतर मामलों में बस में आग लगते ही ड्राइवर और कंडक्टर का भागना भी है। जिन्होंने यात्रियों की बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की। केंद्र सरकार नियम बनाती है। लेकिन आमतौर उसके अमल में ढिलाई बरती जाती है।
बसों में आग लगने के क्या हैं कारण?
दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर और रोड सेफ्टी विशेषज्ञ अनिल छिकारा का कहना है कि बसों में आग लगने के कई अहम कारण हैं। बस में अधिक लोड भरने से उसका टेंपरेचर बढ़ने से शॉर्ट सर्किट हो जाना, लोकल बस बॉडी बिल्डरों द्वारा बसों में सब-स्टैंडर्ड माल इस्तेमाल करना, बसों और एसी की प्रापर मेंटेनेंस ना होना और क्षमता से अधिक लोगों को बसों में भरना आदि है।
इसके अलावा एक और बड़ी बात अब पिछले कुछ समय से यह भी हो रही है कि बसों में एक बड़ी कंपनी वोल्वो द्वारा इमरजेंसी गेट की जगह लंबा शीश लगाया गया। इसकी देखादेख लोकल स्तर पर बस बॉडी बनाने वाले बॉडी बिल्डरों ने भी बसों को ऐसे ही बनाना शुरू कर दिया। जिसमें इमरजेंसी गेट बनाए ही नहीं जा रहे। जिनमें बनाए भी जा रहे हैं। उनमें भी बाद में सीट लगा दी जाती है।
नियमों को ताक पर रखकर बनाया जाता है बसों का डिजाइन
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी और अब नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉक्टर प्रोफेसर विक्रम सिंह ने बसों में हादसों को लेकर सीधे तौर पर इनके डिजाइन का फाल्टी होना बताया। जिसमें नियमों को ताक पर रखकर बसों को चलते-फिरते ताबूतों में बदला जा रहा है। उन्होंने इसकी चार बड़ी वजह बताईं। इसमें फाल्टी डिजाइन, बस के इंटीरियर में ज्वलनशील सिल्क, फोम और रेक्सीन का इस्तेमाल, कम पढ़े-लिखों और ट्रैफिक नियम ना जानने वालों को भी हेवी ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना और कई बार शराब पीकर गाड़ी चलाना।
उन्होंने यह भी बताया कि बसों का इस्तेमाल यात्रियों को ले जाने के लिए है। लेकिन हो यह रहा है कि बस वाले यात्रियों से अधिक वजन में बसों में माल भर ले रहे हैं। बसों की छतों पर भी माल लोडिंग किया जा रहा है। जो की नहीं होना चाहिए। जयपुर बस हादसे में भी बस की छत पर एलपीजी सिलिंडर, बाइक और अन्य सामान भरा गया था। जिसे हादसे की बड़ी वजह बताया जा रहा है।
बसों में नहीं होता इमरजेंसी गेट
लंबे वक्त तक ट्रांसपोर्ट सेक्टर में काम करने वाले रिटायर्ड मोटर लाइसेंसिंग ऑफिसर नंद गोपाल का कहना है कि असल में हो यह रहा है कि बस वाले बस को पास कराने के लिए पहले अलग से बस को डिजाइन कराते हैं। और फिर जब बस पास हो जाती है तो बस में फिर से हेर-फेर करके उसमें सिटिंग कैपेसिटी बढ़ाते हुए उसके इमरजेंसी एग्जिट गेटों तक में सीटों को लगवा देते हैं। ऐसे में जब आग लगती है तो यात्रियों के बचने के लिए कोई इमरजेंसी गेट नहीं होता। फिर गाड़ियों में जो ऑटोमेटिक सिस्टम होते हैं। इससे आग लगने पर वह सब काम करना बंद कर देते हैं। सबसे बड़ी समस्या बसों में यात्रियों और सामान की ओवरलोडिंग है। लंबे रूट की बस हर राज्य में ट्रांसपोर्ट और पुलिस अफसरों की नजरों से निकलती हुई जाती है। सभी को बसों की छतों पर सामान भी लदा नजर आता है, लेकिन एक्शन कोई नहीं लेता।
ऑल इंडिया मोटर एंड गूडस ट्रांसपोर्ट असोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने इसके पीछे बड़ी वजह यात्री बसों में माल ढोना बताया। जिसकी कोई जांच नहीं होती। ट्रकों में माल जाता है तो उसके पूरे कागज चेक किए जाते हैं। माल देखा जाता है कि कोई ज्वलनशील पदार्थ तो नहीं। जैसलमेर वाले में पटाखे थे, एक में मोबाइल फोन और इसमें गैस सिलिंडर थे। सरकार को इस पर जल्द से जल्द कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा।
आग लगने वाली बसों में अधिकतर BS-6
यहीं, दिल्ली इंटरस्टेट बस ऑपरेटर्स संघ के जनरल सेक्रेटरी श्यामलाल गोला का कहना है कि जितनी भी बसें जल रही हैं। वह अधिकतर बीएस-6 हैं। इनमें शॉर्ट सर्किट की समस्या सबसे अधिक आ रही है। जब बस पास होती है, सर्टिफिकेट है और सब कुछ नियमों के अनुसार है तो बस मालिक की गलती कैसे? हां, अगर कहीं नियमों के खिलाफ कार्य किया जा रहा है तो वह बस पास कैसे हो गई? इस पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। जो लोग यात्री बसों का दुरुपयोग कर रहे हैं। निसंदेह उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
क्या होना चाहिए समाधान
आग लगने की बड़ी घटनाएं
14 अक्टूबर- जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर चलती एसी स्लीपर बस में लगी आग। हादसे में 26 यात्रियों की मौत।
24 अक्टूबर-आंध्र प्रदेश के कुरनूल में एसी बस में टकराई बाइक। इसके बाद बस में लगी आग। हादसे में 20 लोगों की जलकर दर्दनाक मौत।
25 अक्टूबर- मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में बस में लगी आग। गनीमत रही किसी की जान नहीं गई।
26 अक्टूबर-उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आगरा एक्सप्रेस-वे पर चलती एसी बस का टायर फटा और बस में आग लग गई। बस में 70 लोग सवार थे। सभी सकुशल।
15 मई- बिहार के बेगूसराय से दिल्ली जा रही बस में लखनऊ के किसान पथ पर आग लगी। हादसे में दो बच्चों समेत पांच की मौत।
हादसों के कारण में एक्सपर्ट ने बसों का फाल्टी डिजाइन,शॉर्ट सर्किट होना, यात्री बसों में माल ढोना, छतों पर भी ऊंचाई तक लगेज भरना, नियमों को ताक पर रखना, क्षमता से अधिक बैठने और सोने के लिए सीटें बनवाना, ड्राइवरों की आधी-अधूरी ट्रेनिंग और लोकल बॉडी बिल्डरों द्वारा बसों में कम गुणवत्ता का माल लगाकर बस को बनाना आदि बताया। साथ ही अधिकतर मामलों में बस में आग लगते ही ड्राइवर और कंडक्टर का भागना भी है। जिन्होंने यात्रियों की बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की। केंद्र सरकार नियम बनाती है। लेकिन आमतौर उसके अमल में ढिलाई बरती जाती है।
बसों में आग लगने के क्या हैं कारण?
दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर और रोड सेफ्टी विशेषज्ञ अनिल छिकारा का कहना है कि बसों में आग लगने के कई अहम कारण हैं। बस में अधिक लोड भरने से उसका टेंपरेचर बढ़ने से शॉर्ट सर्किट हो जाना, लोकल बस बॉडी बिल्डरों द्वारा बसों में सब-स्टैंडर्ड माल इस्तेमाल करना, बसों और एसी की प्रापर मेंटेनेंस ना होना और क्षमता से अधिक लोगों को बसों में भरना आदि है।
इसके अलावा एक और बड़ी बात अब पिछले कुछ समय से यह भी हो रही है कि बसों में एक बड़ी कंपनी वोल्वो द्वारा इमरजेंसी गेट की जगह लंबा शीश लगाया गया। इसकी देखादेख लोकल स्तर पर बस बॉडी बनाने वाले बॉडी बिल्डरों ने भी बसों को ऐसे ही बनाना शुरू कर दिया। जिसमें इमरजेंसी गेट बनाए ही नहीं जा रहे। जिनमें बनाए भी जा रहे हैं। उनमें भी बाद में सीट लगा दी जाती है।
नियमों को ताक पर रखकर बनाया जाता है बसों का डिजाइन
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी और अब नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉक्टर प्रोफेसर विक्रम सिंह ने बसों में हादसों को लेकर सीधे तौर पर इनके डिजाइन का फाल्टी होना बताया। जिसमें नियमों को ताक पर रखकर बसों को चलते-फिरते ताबूतों में बदला जा रहा है। उन्होंने इसकी चार बड़ी वजह बताईं। इसमें फाल्टी डिजाइन, बस के इंटीरियर में ज्वलनशील सिल्क, फोम और रेक्सीन का इस्तेमाल, कम पढ़े-लिखों और ट्रैफिक नियम ना जानने वालों को भी हेवी ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना और कई बार शराब पीकर गाड़ी चलाना।
उन्होंने यह भी बताया कि बसों का इस्तेमाल यात्रियों को ले जाने के लिए है। लेकिन हो यह रहा है कि बस वाले यात्रियों से अधिक वजन में बसों में माल भर ले रहे हैं। बसों की छतों पर भी माल लोडिंग किया जा रहा है। जो की नहीं होना चाहिए। जयपुर बस हादसे में भी बस की छत पर एलपीजी सिलिंडर, बाइक और अन्य सामान भरा गया था। जिसे हादसे की बड़ी वजह बताया जा रहा है।
बसों में नहीं होता इमरजेंसी गेट
लंबे वक्त तक ट्रांसपोर्ट सेक्टर में काम करने वाले रिटायर्ड मोटर लाइसेंसिंग ऑफिसर नंद गोपाल का कहना है कि असल में हो यह रहा है कि बस वाले बस को पास कराने के लिए पहले अलग से बस को डिजाइन कराते हैं। और फिर जब बस पास हो जाती है तो बस में फिर से हेर-फेर करके उसमें सिटिंग कैपेसिटी बढ़ाते हुए उसके इमरजेंसी एग्जिट गेटों तक में सीटों को लगवा देते हैं। ऐसे में जब आग लगती है तो यात्रियों के बचने के लिए कोई इमरजेंसी गेट नहीं होता। फिर गाड़ियों में जो ऑटोमेटिक सिस्टम होते हैं। इससे आग लगने पर वह सब काम करना बंद कर देते हैं। सबसे बड़ी समस्या बसों में यात्रियों और सामान की ओवरलोडिंग है। लंबे रूट की बस हर राज्य में ट्रांसपोर्ट और पुलिस अफसरों की नजरों से निकलती हुई जाती है। सभी को बसों की छतों पर सामान भी लदा नजर आता है, लेकिन एक्शन कोई नहीं लेता।
ऑल इंडिया मोटर एंड गूडस ट्रांसपोर्ट असोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने इसके पीछे बड़ी वजह यात्री बसों में माल ढोना बताया। जिसकी कोई जांच नहीं होती। ट्रकों में माल जाता है तो उसके पूरे कागज चेक किए जाते हैं। माल देखा जाता है कि कोई ज्वलनशील पदार्थ तो नहीं। जैसलमेर वाले में पटाखे थे, एक में मोबाइल फोन और इसमें गैस सिलिंडर थे। सरकार को इस पर जल्द से जल्द कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा।
आग लगने वाली बसों में अधिकतर BS-6
यहीं, दिल्ली इंटरस्टेट बस ऑपरेटर्स संघ के जनरल सेक्रेटरी श्यामलाल गोला का कहना है कि जितनी भी बसें जल रही हैं। वह अधिकतर बीएस-6 हैं। इनमें शॉर्ट सर्किट की समस्या सबसे अधिक आ रही है। जब बस पास होती है, सर्टिफिकेट है और सब कुछ नियमों के अनुसार है तो बस मालिक की गलती कैसे? हां, अगर कहीं नियमों के खिलाफ कार्य किया जा रहा है तो वह बस पास कैसे हो गई? इस पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। जो लोग यात्री बसों का दुरुपयोग कर रहे हैं। निसंदेह उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
क्या होना चाहिए समाधान
- सबसे पहले यात्री बसों में सामान ढोने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगना चाहिए।
- नियम तोड़ने वाले बस वालों पर ऑन-द-स्पॉट सख्त एक्शन होना चाहिए
- बसों और इनके एसी की प्रापर और समय पर मेंटेनेंस जरूरी है
- हर छह महीने में बस की जांच होनी चाहिए। ताकि पता लग सके कि बस मालिक ने उसके पास होने के बाद उसमें साठगांठ करके सीटें तो नहीं बढ़ा ली हैं
- बसों में पीछे कम से कम दो इमरजेंसी गेट होने चाहिए
- बस के गेट ऑटोमेटिक ना होकर मैनवल ऑपरेट वाले होने चाहिए। जो आग लगने की स्थिति में काम करना बंद ना करें
- हर शीशे के पास इमरजेंसी में उसे तोड़ने के लिए हथौड़ा लगा होना चाहिए
- आग बुझाने वाले सिलिंडरों में गैस पूरी हो, वह खाली नहीं होने चाहिए
- समय-समय पर बस ड्राइवरों की ट्रेनिंग होना
- बसों में ज्वलनशील सामान का इस्तेमाल कम से कम
- ट्रांसपोर्ट विभाग और पुलिस को भी लोगों की सेफ्टी को सर्वोपरि मानते हुए नियम तोड़ने वाले बसों के खिलाफ सख्त एक्शन लेना चाहिए
आग लगने की बड़ी घटनाएं
14 अक्टूबर- जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर चलती एसी स्लीपर बस में लगी आग। हादसे में 26 यात्रियों की मौत।
24 अक्टूबर-आंध्र प्रदेश के कुरनूल में एसी बस में टकराई बाइक। इसके बाद बस में लगी आग। हादसे में 20 लोगों की जलकर दर्दनाक मौत।
25 अक्टूबर- मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में बस में लगी आग। गनीमत रही किसी की जान नहीं गई।
26 अक्टूबर-उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आगरा एक्सप्रेस-वे पर चलती एसी बस का टायर फटा और बस में आग लग गई। बस में 70 लोग सवार थे। सभी सकुशल।
15 मई- बिहार के बेगूसराय से दिल्ली जा रही बस में लखनऊ के किसान पथ पर आग लगी। हादसे में दो बच्चों समेत पांच की मौत।
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