नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने तुर्की और चीन में बने ड्रोन के झुंड भेजकर भारत पर हमले की बहुत ही भयानक कोशिश की थी। लेकिन, हमारा एंटी एयर डिफेंस सिस्टम इतना मजबूत साबित हुआ कि दुश्मन के सारे मंसूबे फेल हो गए। लेकिन, यूक्रेन ने जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ड्रोन (AI-powered drones) का इस्तेमाल करके रूस के 40 बमवर्षक विमानों को हजारों किलोमीटर दूर घुसकर तबाह किया है, उसने भारत की चिंता बढ़ा दी है। पाकिस्तान जैसे आतंकवादी देश के हाथों में तुर्की या चीन के रास्ते ऐसी तकनीक पहुंचे, उससे पहले भारत को इसकी काट खोजनी पड़ेगी। भारत के लिए यह मुश्किल काम नहीं है। हम ड्रोन टेक्नोलॉजी में बहुत आगे हैं। हम चाहें तो ऐसे ड्रोन बनाकर अपनी युद्ध क्षमता को भी बढ़ा सकते हैं और इसमें परंपरागत लड़ाकू विमानों के मुकाबले लागत भी बहुत कम कर सकते हैं। यही नहीं, भारत ऐसे ड्रोन विकसित करके उसे दूसरे देशों को बेच भी सकता है और ऐसा न कर पाने की कोई वजह भी नहीं है। इसलिए, यूक्रेन की ओर से रूस के एयरबेस पर किया गया ड्रोन हमला, अगर खतरे की घंटी है तो इस आफत में भारत अपने भविष्य के लिए उज्ज्वल अवसर भी खोज सकता है।
पाकिस्तान को मिले एआई-पावर्ड ड्रोन तो क्या होगा?
यूक्रेन ने AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले ड्रोन से रूस पर हमला किया। उसने रूस के दूर-दराज इलाकों में 40 से ज्यादा बमवर्षक विमानों को तबाह कर दिया। इस हमले ने भारत के रक्षा विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब भारत के लिए यह जरूरी है कि वह ड्रोन तकनीक का विस्तार करे। उसे न सिर्फ अपनी सुरक्षा करनी है, बल्कि दुनिया में ड्रोन तकनीक का लीडर भी बनना है। पाकिस्तान ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ड्रोन से हमला किया था। भारत ने उस हमले को नाकाम तो कर दिया लेकिन, इससे यह नहीं समझना चाहिए कि हम पूरी तरह से सुरक्षित हैं। यूक्रेन के ड्रोन हमलों से पता चलता है कि दुश्मन देश के अंदर तक हमला कर सकते हैं। खासकर FPV (फर्स्ट-पर्सन व्यू) और AI से चलने वाले ड्रोन से। ये ड्रोन आसानी से पकड़ में नहीं आते। वैसे भी तुर्की और चीन मिलकर ड्रोन तकनीक को आगे बढ़ा रहे हैं। चीन ड्रोन बेचने वाला सबसे बड़ा देश है। तुर्की के बायरक्तार ड्रोन ने लीबिया, सीरिया और अजरबैजान में युद्ध का रुख बदल दिया था। अगर ये तकनीक पाकिस्तान को मिल जाती है, तो वह भारत में कहीं भी ड्रोन से हमला कर सकता है। सिर्फ सेना के ठिकानों पर ही नहीं, बल्कि आम लोगों के इलाकों में भी।
अब स्मार्ट अटैक टेक्नोलॉजी ही जंग के असली हथियार
आज भारत के पास ड्रोन से बचने के लिए कई एंटी-ड्रोन डिफेंस सिस्टम हैं। जैसे कि रडार से चलने वाली बंदूकें, इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग सिस्टम और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के लेजर हथियार। लेकिन, अब फाइबर-ऑप्टिक ड्रोन आ गए हैं। ये जैमिंग से भी नहीं रुकते। AI से चलने वाले ड्रोन भी ऐसे ही हैं। इसलिए, सिर्फ बॉर्डर पर सुरक्षा करने से काम नहीं चलेगा। अब देश के अंदर भी हवाई हमलों से बचने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी होगी। जैसे कि नेवी के बेस, हवाई अड्डे और जरूरी सरकारी इमारतों की सुरक्षा। कुल मिलाकर कहें कि ड्रोन अब युद्ध का नया तरीका बन गए हैं तो गलत नहीं होगा। यूक्रेन ने एक साल में ही बेसिक FPV ड्रोन से AI वाले कामिकेज ड्रोन बना लिए। ये ड्रोन खुद ही दुश्मन के टारगेट की पहचान कर हमला करते हैं। यूक्रेन का यह हमला 1996 में हुए परमाणु हथियार छोड़ने की बरसी पर हुआ। इससे यह संदेश मिला है कि अब स्मार्ट अटैक टेक्नोलॉजी ही असली हथियार है।
तकनीक पहले से है, अब रक्षा के लिए इस्तेमाल करना होगा
भारत को इसे गंभीरता से लेना होगा। अगर AI वाले ड्रोन कुछ हजार रुपये में दुश्मन के करोडों का नुकसान कर सकते हैं, तो भारत को इस सेक्टर में ज्यादा ध्यान देना होगा। इससे भारत न सिर्फ अपनी रक्षा कर पाएगा, बल्कि ड्रोन बनाने में दुनिया का लीडर भी बन सकता है। भारत के पास पहले से ही ड्रोन बनाने की अच्छी तकनीक है। ऑपरेशन सिंदूर में स्काईस्ट्राइकर और नागस्त्र-1 जैसे ड्रोन इस्तेमाल किए गए थे। ये ड्रोन भारतीय कंपनियों ने इजराइल के साथ मिलकर बनाए हैं। लेकिन, ये ड्रोन अभी भी यूक्रेन के AI वाले ड्रोन की तुलना में कमजोर हैं। भविष्य में युद्ध सिर्फ ड्रोन से नहीं होगा, बल्कि AI वाले ड्रोन से होगा। भारत को AI, ड्रोन के झुंड और खुद निशाना लगाने वाली तकनीक में ज्यादा पैसा लगाना होगा। इससे ड्रोन खुद ही फैसला ले सकेंगे, युद्ध के मैदान में बदलती स्थिति के अनुसार काम कर सकेंगे और सटीक निशाना लगा सकेंगे। देश में हाल ही में नेशनल इनोवेशन चैलेंज फॉर ड्रोन एप्लीकेशन एंड रिसर्च (NIDAR) शुरू किया गया है। यह एक अच्छी पहल है। स्वायान (SwaYaan) इनिशिएटिव के तहत छात्रों को खेती और आपदा में मदद करने वाले ड्रोन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन, अब इसे रक्षा के लिए भी इस्तेमाल करना होगा। जैसे साइबर सुरक्षा जरूरी है, वैसे ही हवाई सुरक्षा भी जरूरी है। इसके लिए सैटेलाइट, रडार, AI और हथियारों को मिलाकर एक सिस्टम बनाना होगा, जो बदली परिस्थितियों में इस्तेमाल में आ सके।
ड्रोन तकनीक में आफत में भी अवसर खोज सकता है भारत
भारत के पास यह मौका है कि वह ड्रोन तकनीक में आगे बढ़े और दुनिया को भी स्मार्ट ड्रोन बेचे। भारत के पास स्टार्टअप हैं, अच्छी डिजाइन बनाने की क्षमता है और इजराइल जैसे देशों के साथ पार्टनरशिप भी है। इसलिए, भारत अफ्रीका, साउथईस्ट एशिया और लैटिन अमेरिका के उन देशों को ड्रोन बेच सकता है, जो चीन या अमेरिका के मुकाबले सस्ते ड्रोन खरीदना चाहते हैं।
भारत को ये पांच काम करने चाहिए:
1. देश के अंदर ड्रोन से बचने के लिए मजबूत सिस्टम बनाना।
2. AI और ड्रोन तकनीक को तेजी से आगे बढ़ाना।
3. NIDAR को डिफेंस तकनीक का हब बनाना।
4. ड्रोन को आम लोगों के कामों में भी इस्तेमाल करना।
5. दूसरे देशों के लिए ड्रोन का निर्यातक बनना।
यूक्रेन की ड्रोन जंग एक सबक है। जिसके पास सबसे ज्यादा स्मार्ट ड्रोन हैं,वह युद्ध के दौरान बाजी पलटने का दम रखते हैं। भारत के बॉर्डर की सुरक्षा मजबूत हो सकती है, लेकिन असली लड़ाई अब आसमान, सर्वर और ड्रोन के झुंड के माध्यम से लड़ी जाएगी। अगर हम इस चुनौती का सामना करते हैं, तो हम न सिर्फ अपने आसमान की रक्षा कर सकेंगे, बल्कि उसके बेताज बादशाह भी बने रहेंगे।
पाकिस्तान को मिले एआई-पावर्ड ड्रोन तो क्या होगा?
यूक्रेन ने AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले ड्रोन से रूस पर हमला किया। उसने रूस के दूर-दराज इलाकों में 40 से ज्यादा बमवर्षक विमानों को तबाह कर दिया। इस हमले ने भारत के रक्षा विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब भारत के लिए यह जरूरी है कि वह ड्रोन तकनीक का विस्तार करे। उसे न सिर्फ अपनी सुरक्षा करनी है, बल्कि दुनिया में ड्रोन तकनीक का लीडर भी बनना है। पाकिस्तान ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ड्रोन से हमला किया था। भारत ने उस हमले को नाकाम तो कर दिया लेकिन, इससे यह नहीं समझना चाहिए कि हम पूरी तरह से सुरक्षित हैं। यूक्रेन के ड्रोन हमलों से पता चलता है कि दुश्मन देश के अंदर तक हमला कर सकते हैं। खासकर FPV (फर्स्ट-पर्सन व्यू) और AI से चलने वाले ड्रोन से। ये ड्रोन आसानी से पकड़ में नहीं आते। वैसे भी तुर्की और चीन मिलकर ड्रोन तकनीक को आगे बढ़ा रहे हैं। चीन ड्रोन बेचने वाला सबसे बड़ा देश है। तुर्की के बायरक्तार ड्रोन ने लीबिया, सीरिया और अजरबैजान में युद्ध का रुख बदल दिया था। अगर ये तकनीक पाकिस्तान को मिल जाती है, तो वह भारत में कहीं भी ड्रोन से हमला कर सकता है। सिर्फ सेना के ठिकानों पर ही नहीं, बल्कि आम लोगों के इलाकों में भी।
अब स्मार्ट अटैक टेक्नोलॉजी ही जंग के असली हथियार
आज भारत के पास ड्रोन से बचने के लिए कई एंटी-ड्रोन डिफेंस सिस्टम हैं। जैसे कि रडार से चलने वाली बंदूकें, इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग सिस्टम और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के लेजर हथियार। लेकिन, अब फाइबर-ऑप्टिक ड्रोन आ गए हैं। ये जैमिंग से भी नहीं रुकते। AI से चलने वाले ड्रोन भी ऐसे ही हैं। इसलिए, सिर्फ बॉर्डर पर सुरक्षा करने से काम नहीं चलेगा। अब देश के अंदर भी हवाई हमलों से बचने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी होगी। जैसे कि नेवी के बेस, हवाई अड्डे और जरूरी सरकारी इमारतों की सुरक्षा। कुल मिलाकर कहें कि ड्रोन अब युद्ध का नया तरीका बन गए हैं तो गलत नहीं होगा। यूक्रेन ने एक साल में ही बेसिक FPV ड्रोन से AI वाले कामिकेज ड्रोन बना लिए। ये ड्रोन खुद ही दुश्मन के टारगेट की पहचान कर हमला करते हैं। यूक्रेन का यह हमला 1996 में हुए परमाणु हथियार छोड़ने की बरसी पर हुआ। इससे यह संदेश मिला है कि अब स्मार्ट अटैक टेक्नोलॉजी ही असली हथियार है।
तकनीक पहले से है, अब रक्षा के लिए इस्तेमाल करना होगा
भारत को इसे गंभीरता से लेना होगा। अगर AI वाले ड्रोन कुछ हजार रुपये में दुश्मन के करोडों का नुकसान कर सकते हैं, तो भारत को इस सेक्टर में ज्यादा ध्यान देना होगा। इससे भारत न सिर्फ अपनी रक्षा कर पाएगा, बल्कि ड्रोन बनाने में दुनिया का लीडर भी बन सकता है। भारत के पास पहले से ही ड्रोन बनाने की अच्छी तकनीक है। ऑपरेशन सिंदूर में स्काईस्ट्राइकर और नागस्त्र-1 जैसे ड्रोन इस्तेमाल किए गए थे। ये ड्रोन भारतीय कंपनियों ने इजराइल के साथ मिलकर बनाए हैं। लेकिन, ये ड्रोन अभी भी यूक्रेन के AI वाले ड्रोन की तुलना में कमजोर हैं। भविष्य में युद्ध सिर्फ ड्रोन से नहीं होगा, बल्कि AI वाले ड्रोन से होगा। भारत को AI, ड्रोन के झुंड और खुद निशाना लगाने वाली तकनीक में ज्यादा पैसा लगाना होगा। इससे ड्रोन खुद ही फैसला ले सकेंगे, युद्ध के मैदान में बदलती स्थिति के अनुसार काम कर सकेंगे और सटीक निशाना लगा सकेंगे। देश में हाल ही में नेशनल इनोवेशन चैलेंज फॉर ड्रोन एप्लीकेशन एंड रिसर्च (NIDAR) शुरू किया गया है। यह एक अच्छी पहल है। स्वायान (SwaYaan) इनिशिएटिव के तहत छात्रों को खेती और आपदा में मदद करने वाले ड्रोन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन, अब इसे रक्षा के लिए भी इस्तेमाल करना होगा। जैसे साइबर सुरक्षा जरूरी है, वैसे ही हवाई सुरक्षा भी जरूरी है। इसके लिए सैटेलाइट, रडार, AI और हथियारों को मिलाकर एक सिस्टम बनाना होगा, जो बदली परिस्थितियों में इस्तेमाल में आ सके।
ड्रोन तकनीक में आफत में भी अवसर खोज सकता है भारत
भारत के पास यह मौका है कि वह ड्रोन तकनीक में आगे बढ़े और दुनिया को भी स्मार्ट ड्रोन बेचे। भारत के पास स्टार्टअप हैं, अच्छी डिजाइन बनाने की क्षमता है और इजराइल जैसे देशों के साथ पार्टनरशिप भी है। इसलिए, भारत अफ्रीका, साउथईस्ट एशिया और लैटिन अमेरिका के उन देशों को ड्रोन बेच सकता है, जो चीन या अमेरिका के मुकाबले सस्ते ड्रोन खरीदना चाहते हैं।
भारत को ये पांच काम करने चाहिए:
1. देश के अंदर ड्रोन से बचने के लिए मजबूत सिस्टम बनाना।
2. AI और ड्रोन तकनीक को तेजी से आगे बढ़ाना।
3. NIDAR को डिफेंस तकनीक का हब बनाना।
4. ड्रोन को आम लोगों के कामों में भी इस्तेमाल करना।
5. दूसरे देशों के लिए ड्रोन का निर्यातक बनना।
यूक्रेन की ड्रोन जंग एक सबक है। जिसके पास सबसे ज्यादा स्मार्ट ड्रोन हैं,वह युद्ध के दौरान बाजी पलटने का दम रखते हैं। भारत के बॉर्डर की सुरक्षा मजबूत हो सकती है, लेकिन असली लड़ाई अब आसमान, सर्वर और ड्रोन के झुंड के माध्यम से लड़ी जाएगी। अगर हम इस चुनौती का सामना करते हैं, तो हम न सिर्फ अपने आसमान की रक्षा कर सकेंगे, बल्कि उसके बेताज बादशाह भी बने रहेंगे।
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