नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने बीते बुधवार को दिवाली पर पटाखे-बम जलाए जाने पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि पटाखे फोड़कर, लाखों लोगों का नदियों में स्नान करना, मूर्ति विसर्जन और धार्मिक उत्सवों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करना संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अनिवार्य धार्मिक रीति-रिवाज नहीं हैं। न्यायमूर्ति ओका ने आगे कहा कि कोई भी धर्म हमें पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति या प्रोत्साहन नहीं देता; बल्कि, यह हमें पर्यावरण की रक्षा करना और जीवों व जानवरों के प्रति दया दिखाना सिखाता है।
हमारे देश में धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति
पूर्व जस्टिस ने कहा कि दुर्भाग्य से हमारे देश में धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति है। यदि हम भारत में सभी धर्मों के सिद्धांतों की जांच करें, तो हम पाएंगे कि पर्यावरण की रक्षा और जीवों के प्रति दया दिखाने का संदेश हर धर्म के सिद्धांतों में मिलेगा। सभी धर्म इसी परिकल्पना पर आगे बढ़ते हैं। कोई भी धर्म हमें पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति नहीं देता है। धर्म हमें पर्यावरण की रक्षा करना और जीवों और जानवरों के प्रति दया दिखाना सिखाता है। कोई भी धर्म हमें त्योहार मनाते समय जानवरों पर क्रूरता करने की अनुमति नहीं देता है।
'अजान' को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट का हवाला दिया
पूर्व न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने धार्मिक उत्सवों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर भी गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने कहा कि धार्मिक उत्सवों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है, जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या किसी भी धर्म में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत है? इस दौरान उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें 'अजान' के लिए लाउसस्पीकर और जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं माना गया था।
कौन हैं पूर्व जस्टिस अभय एस ओका?जस्टिस ओका ने ठाणे जिला न्यायालय में अपने पिता के चैंबर में अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी। अगस्त 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और नवंबर 2005 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। मई 2019 में, उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली और अगस्त 2021 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ओका इसी साल को 24 मई को रिटायर हुए हैं।
हमारे देश में धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति
पूर्व जस्टिस ने कहा कि दुर्भाग्य से हमारे देश में धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति है। यदि हम भारत में सभी धर्मों के सिद्धांतों की जांच करें, तो हम पाएंगे कि पर्यावरण की रक्षा और जीवों के प्रति दया दिखाने का संदेश हर धर्म के सिद्धांतों में मिलेगा। सभी धर्म इसी परिकल्पना पर आगे बढ़ते हैं। कोई भी धर्म हमें पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति नहीं देता है। धर्म हमें पर्यावरण की रक्षा करना और जीवों और जानवरों के प्रति दया दिखाना सिखाता है। कोई भी धर्म हमें त्योहार मनाते समय जानवरों पर क्रूरता करने की अनुमति नहीं देता है।
'अजान' को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट का हवाला दिया
पूर्व न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने धार्मिक उत्सवों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर भी गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने कहा कि धार्मिक उत्सवों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है, जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या किसी भी धर्म में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत है? इस दौरान उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें 'अजान' के लिए लाउसस्पीकर और जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं माना गया था।
कौन हैं पूर्व जस्टिस अभय एस ओका?जस्टिस ओका ने ठाणे जिला न्यायालय में अपने पिता के चैंबर में अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी। अगस्त 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और नवंबर 2005 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। मई 2019 में, उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली और अगस्त 2021 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ओका इसी साल को 24 मई को रिटायर हुए हैं।
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