पटना: अपराध की दुनिया के नामवरों की अपनी जगह कब तक बनी रहेगी है, वह उन्हें खुद ही पता नहीं होता। लेकिन इतिहास बताता है कि इन अपराधियों का जब पतन होता है और ये अपने ही पाले गुर्गे से मौत स्वीकार करते हैं तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण इनके बीच आई कोई हसीना ही बनती रही है। लेकिन इस बात का दूर-दूर तक भागलपुर ,मुंगेर, लखीसराय और पटना तक आतंक की दुनिया कायम करने वाले कैलू यादव को अंदेशा भी नहीं था। आम तौर पर अपराधियों को यह भी पता नहीं चलता था कि हुस्न के साए में मौत का ताना बना बुना जा रहा है। कैलू यादव की मौत की सौदागर का ही नाम हुस्नबानो था। चलिए जानते है हुस्न की आड़ में कैलू के मर्डर की कहानी।
कौन था कैलू यादव?
अपराध की दुनिया का बादशाह कैलू यादव का जन्म मुंगेर के दियारा में हुआ था। मुंगेर और लखीसराय का दियारा का अपना एक कनेक्शन बना रहा है। पुलिस की दबिश में लखीसराय के अपराधी मुंगेर दियारा में और मुंगेर के अपराधी लखीसराय में आकर छिप जाते थे। अपराधियों की इस मजबूरी ने राज्य को एक नया अपराधी दिया जिसका नाम था कैलू यादव। यह वही कैलू यादव था जिसकी ग्रूमिंग लखीसराय के दियारा में कुख्यात अपराधी 'अधिक यादव' की सरपरस्ती में हुआ। 'अधिक यादव' हत्या करने के वीभत्स तरीके के कारण कुख्यात था। और वह तरीका था शिकार शख्स का पेट फाड़ कर गंगा में बहा देना। वजह यह होती थी कि पेट भरे रहने के कारण उसमें पानी भर जाता था और लाश सतह पर नहीं दिखती। लेकिन अपराध की दुनिया में क्रूरता में गुरु यानी 'अधिक यादव' गुरु ही रह गया और चेला चीनी बन गया।
कैलू यादव की भाषा थी कुट्टी-कुट्टी काटना
सभी अपराधियों ने अपनी भाषा तय कर रखी थी। लेकिन जैसा कि पहले ही कहा कि गुरु गुड़ रह गया और चेला चीनी, वही हुआ, कैलू यादव ने अपने फन फैलाए और अपराध की दुनिया को मुंगेर से वाया लखीसराय होते एक बड़ी लकीर खींच डाली। अपने साम्राज्य को वो पटना जिले तक ले गया। इस पटना तक आने के सफर में कैलू यादव की मुलाकात दुलारचंद यादव से होती है। और इसी गलबहियां से कहानी का विस्तार होता है । कई हत्या एक साथ करते कैलू यादव का विश्वास दुलारचंद यादव पर हो गया। और फिर खौफ की दुनिया कायम करने की दुनिया में एक नई जोड़ी तैयार हो गई।
जोड़ी के बीच हुस्न बानो का प्रवेश
अपराध में बढ़ते कदम के साथ पुलिस की दबिश बढ़ी। दियारा अब सुरक्षित नहीं रह गया। इस दौर में कैलू यादव और दुलारचंद यादव के छिपने का स्थान धनबाद बन गया। धनबाद छिपने की प्रक्रिया में कैलू यादव की मुलाकात कॉलेज गर्ल हुस्न बानो से हुई। धीरे धीरे यह मुलाकात प्रेम में बदल गई। अब कैलू यादव जब भी धनबाद जाता तो हुस्न बानो की जुल्फों में पनाह लेता। इस आने-जाने के क्रम में कैलू यादव और दुलारचंद यादव एक दिन धनबाद पहुंच गए। लखीसराय के वरिष्ठ पत्रकार बीरेंद्र सिंह बताते हैं कि दुलारचंद यादव ने पहली ही मुलाकात में हुस्न बानो को दिल दे दिया। हालांकि बीरेंद्र सिंह कहते हैं कि हुस्न बानो उनको चाहती है या नहीं इस बात का खुलासा कभी हुआ नहीं। लेकिन जब कैलू यादव ने हुस्न बानो से निकाह कर अपनी बेगम बना लिया तो दुलारचंद यादव का प्यार और भी उफान मारने लगा। लेकिन इजहार करने का मौका नहीं मिल रहा था। धीरे धीरे वो उदास रहने लगे तो उनके साथ रहने वालों ने जब पूछा तो वे अपनी पूरी दास्तान सुना गए। पत्रकार बीरेंद्र सिंह कहते हैं कि दुलारचंद के गुर्गों ने प्लान कर हुस्न बानो को धनबाद से उठा लिया। इस बात का पता जब कैलू यादव को चला तो उसने दुलारचंद का किस्सा ही खत्म करने की ठान ली। कहा जाता है कि कैलू यादव ने दुलारचंद के गांव तारतर के कुछ यादवों को इकट्ठा किया । फिर एक प्लान के तहत तारतर गांव में हमले की योजना बनाई।
तिथि 5 जून 1989
कैलू यादव ने दुलारचंद यादव की मौत की तारीख 5 जून 1989 को तय कर दी। उस दिन हथियार से लैस कैलू यादव ने तारतर गांव पर हमला बोल दिया। पर दुलारचंद यादव का संयोग था कि वो कैलू यादव के हाथ नहीं लगा। भड़के कैलू यादव ने गुस्से में निर्दोष शिव साहू, टूना सहनी, गनौरी महतो, बेलदार और सकल महतो की हत्या कर दी। लेकिन इस घटना के बाद दुलारचंद यादव ने अपने गैंग का विस्तार किया और अपना संबंध कांग्रेस के दिग्गजों से जोड़ लिया और मजबूत हो गया।
कैलू यादव का अंत
पत्रकार बीरेंद्र सिंह बताते हैं कि कैलू यादव की मौत की कहानी कई बार उड़ी। पर पुष्टि नहीं हुई। पर 16 मार्च 1992 को कैलू यादव की हत्या की पुष्टि हुई। कैलू को किसने मारा इसका पता नहीं चला। बाद में कैलू यादव के भाई जीवन यादव उर्फ सरदार ने अपराध की दुनिया में कदम रख कर कैलू यादव के अपराध की विरासत को
संभाल लिया और एक नए आतंक का साम्राज्य कायम हो गया।
कौन था कैलू यादव?
अपराध की दुनिया का बादशाह कैलू यादव का जन्म मुंगेर के दियारा में हुआ था। मुंगेर और लखीसराय का दियारा का अपना एक कनेक्शन बना रहा है। पुलिस की दबिश में लखीसराय के अपराधी मुंगेर दियारा में और मुंगेर के अपराधी लखीसराय में आकर छिप जाते थे। अपराधियों की इस मजबूरी ने राज्य को एक नया अपराधी दिया जिसका नाम था कैलू यादव। यह वही कैलू यादव था जिसकी ग्रूमिंग लखीसराय के दियारा में कुख्यात अपराधी 'अधिक यादव' की सरपरस्ती में हुआ। 'अधिक यादव' हत्या करने के वीभत्स तरीके के कारण कुख्यात था। और वह तरीका था शिकार शख्स का पेट फाड़ कर गंगा में बहा देना। वजह यह होती थी कि पेट भरे रहने के कारण उसमें पानी भर जाता था और लाश सतह पर नहीं दिखती। लेकिन अपराध की दुनिया में क्रूरता में गुरु यानी 'अधिक यादव' गुरु ही रह गया और चेला चीनी बन गया।
कैलू यादव की भाषा थी कुट्टी-कुट्टी काटना
सभी अपराधियों ने अपनी भाषा तय कर रखी थी। लेकिन जैसा कि पहले ही कहा कि गुरु गुड़ रह गया और चेला चीनी, वही हुआ, कैलू यादव ने अपने फन फैलाए और अपराध की दुनिया को मुंगेर से वाया लखीसराय होते एक बड़ी लकीर खींच डाली। अपने साम्राज्य को वो पटना जिले तक ले गया। इस पटना तक आने के सफर में कैलू यादव की मुलाकात दुलारचंद यादव से होती है। और इसी गलबहियां से कहानी का विस्तार होता है । कई हत्या एक साथ करते कैलू यादव का विश्वास दुलारचंद यादव पर हो गया। और फिर खौफ की दुनिया कायम करने की दुनिया में एक नई जोड़ी तैयार हो गई।
जोड़ी के बीच हुस्न बानो का प्रवेश
अपराध में बढ़ते कदम के साथ पुलिस की दबिश बढ़ी। दियारा अब सुरक्षित नहीं रह गया। इस दौर में कैलू यादव और दुलारचंद यादव के छिपने का स्थान धनबाद बन गया। धनबाद छिपने की प्रक्रिया में कैलू यादव की मुलाकात कॉलेज गर्ल हुस्न बानो से हुई। धीरे धीरे यह मुलाकात प्रेम में बदल गई। अब कैलू यादव जब भी धनबाद जाता तो हुस्न बानो की जुल्फों में पनाह लेता। इस आने-जाने के क्रम में कैलू यादव और दुलारचंद यादव एक दिन धनबाद पहुंच गए। लखीसराय के वरिष्ठ पत्रकार बीरेंद्र सिंह बताते हैं कि दुलारचंद यादव ने पहली ही मुलाकात में हुस्न बानो को दिल दे दिया। हालांकि बीरेंद्र सिंह कहते हैं कि हुस्न बानो उनको चाहती है या नहीं इस बात का खुलासा कभी हुआ नहीं। लेकिन जब कैलू यादव ने हुस्न बानो से निकाह कर अपनी बेगम बना लिया तो दुलारचंद यादव का प्यार और भी उफान मारने लगा। लेकिन इजहार करने का मौका नहीं मिल रहा था। धीरे धीरे वो उदास रहने लगे तो उनके साथ रहने वालों ने जब पूछा तो वे अपनी पूरी दास्तान सुना गए। पत्रकार बीरेंद्र सिंह कहते हैं कि दुलारचंद के गुर्गों ने प्लान कर हुस्न बानो को धनबाद से उठा लिया। इस बात का पता जब कैलू यादव को चला तो उसने दुलारचंद का किस्सा ही खत्म करने की ठान ली। कहा जाता है कि कैलू यादव ने दुलारचंद के गांव तारतर के कुछ यादवों को इकट्ठा किया । फिर एक प्लान के तहत तारतर गांव में हमले की योजना बनाई।
तिथि 5 जून 1989
कैलू यादव ने दुलारचंद यादव की मौत की तारीख 5 जून 1989 को तय कर दी। उस दिन हथियार से लैस कैलू यादव ने तारतर गांव पर हमला बोल दिया। पर दुलारचंद यादव का संयोग था कि वो कैलू यादव के हाथ नहीं लगा। भड़के कैलू यादव ने गुस्से में निर्दोष शिव साहू, टूना सहनी, गनौरी महतो, बेलदार और सकल महतो की हत्या कर दी। लेकिन इस घटना के बाद दुलारचंद यादव ने अपने गैंग का विस्तार किया और अपना संबंध कांग्रेस के दिग्गजों से जोड़ लिया और मजबूत हो गया।
कैलू यादव का अंत
पत्रकार बीरेंद्र सिंह बताते हैं कि कैलू यादव की मौत की कहानी कई बार उड़ी। पर पुष्टि नहीं हुई। पर 16 मार्च 1992 को कैलू यादव की हत्या की पुष्टि हुई। कैलू को किसने मारा इसका पता नहीं चला। बाद में कैलू यादव के भाई जीवन यादव उर्फ सरदार ने अपराध की दुनिया में कदम रख कर कैलू यादव के अपराध की विरासत को
संभाल लिया और एक नए आतंक का साम्राज्य कायम हो गया।
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