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जापान से लेकर इंडोनेशिया तक ने ट्रेड डील पर टेके घुटने, ट्रंप की धमकियों के सामने अड़ा रहा भारत, ये है बौखलाहट की असली वजह

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वॉशिंगटन: कुछ हफ्ते पहले तक ऐसा लग रहा था कि भारत, अमेरिका के साथ ट्रेड डील करने वाला पहला देश बन जाएगा। अमेरिका के वित्त मंत्री ने भी ऐसे ही इशारे दिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी में की गई वाइट हाउस यात्रा के बाद ही यह तय हो गया था। जुलाई तक, भारतीयों को लगने लगा था कि वे एक समझौते पर पहुंच गए हैं और वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर बस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी का इंतजार कर रहे थे। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी नहीं मिल पाया। इसके बजाए भारत को 50 प्रतिशत का करंट दिया गया, जिससे भारतीय एक्सपोर्ट पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है। ये नई दिल्ली और मॉस्को, दोनों के लिए बड़ा झटका था। अमेरिकी पत्रिका पॉलिटिको की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि डोनाल्ड ट्रंप के गुस्से की वजह रूसी तेल थी और वो इस बात से नाराज थे की भारत रूसी तेल खरीदने में कमी क्यों नहीं कर रहा है!



अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी मंच के अध्यक्ष और सीईओ मुकेश अघी ने पॉलिटिको से कहा कि "हम अब ऐसी स्थिति में हैं जहां वह भारत से पूरी तरह नाराज हैं और रिश्ते बनाने की 25 साल की कोशिशें 25 घंटों में धराशायी होती दिख रही हैं। हमें इसे किसी न किसी तरह रोकना होगा... क्योंकि ये रिश्ते दोनों देशों के लिए बेहद अहम हैं।" पॉलिटिको लिखता है कि यह टकराव अमेरिका की चुनौतीपूर्ण स्थिति को भी दिखाता है क्योंकि उसके भारी टैरिफ भारत और ब्राजील जैसे देशों को रूस और चीन के करीब ला रहे हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति लुला डी सिल्वा ने गुरुवार को पीएम मोदी से बात की और उन्होंने ट्रंप से बातचीत करने से इनकार कर दिया।



भारत और अमेरिका की व्यापार वार्ता आखिर क्यों रूकी?

ट्रंप प्रशासन के एक करीबी व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर पॉलिटिको को बताया कि "उन्हें कई हफ्तों पहले ही मान लिया था भारत से व्यापार समझौता हो चुका है। वहीं भारतीय अधिकारियों को भी पूरा यकीन हो गया था कि एक प्रारंभिक समझौते के लिए बस ट्रंप की मंजूरी का इंतजार है। राष्ट्रपति ने खुद कहा था कि उनका मानना है कि भारत के साथ एक समझौता जल्द ही हो जाएगा।" जुलाई के मध्य में ट्रंप ने कहा था कि "हम भारत के बहुत करीब हैं, और... हम यूरोपीय संघ के साथ एक समझौता कर सकते हैं।" लेकिन उनका ध्यान यूरोपीय संघ पर चला गया और भारत के साथ बातचीत ठप हो गई। एक प्रशासनिक अधिकारी के मुताबिक जिसने दोनों देशों के बीच बातचीत के बारे में खुलकर बात करने के लिए अपना नाम नहीं छापने की शर्त रखी थी, उन्होंने पॉलिटिको से कहा कि भारत, जो दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ वाले देशों में से एक है, अपनी व्यापार बाधाओं में से काफी कम करने पर सहमत हो गया, लेकिन पूरी तरह से नहीं। जबकि इंडोनेशिया जैसे देश शून्य टैरिफ करने पर तैयार हो गये थे।



पॉलिटिको के मुताबिक जापान, इंडोनेशिया समेत कई देशों ने डोनाल्ड ट्रंप के आगे घुटने टेक दिए, लेकिन भारत अड़ गया। उसने लिखा है कि भारत के लिए सबसे संवेदनशील रूस से कच्चे तेल की खरीद का मामला है। 2023 में भारत ने रूस से करीब 52.7 अरब डॉलर का तेल आयात किया, जिसमें से कुछ रिफाइन कर यूरोप भेजा गया। भारत का तर्क है कि यह ऊर्जा सुरक्षा की जरूरत है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसे यूक्रेन युद्ध में रूस को फंड देने के तौर पर देखा है। दूसरी तरफ भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने अमेरिका के फैसले की आलोचना की है। और भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका को काउंटर करने की कोशिशें शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में ब्रिक्स देश एक मंच से कोई बड़ा ऐलान कर सकते हैं। चीन खुलकर भारत के साथ आ चुका है और वो अपना दीर्घकालिक फायदा देख रहा है।



एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर भारत और अमेरिका के बीच आखिरकार व्यापार वार्ता पर सहमति नहीं बनती है तो भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध काफी खराब हो सकते हैं। जिसका असर दोनों देशों के बीच के रक्षा संबंध, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री पर देखने को मिल सकता है। मुकेश आघी ने इसे टैरिफ, ऊर्जा सुरक्षा और अहंकार का खेल बताया है। जो आने वाले हफ्ते में यह तय करेंगे कि क्या ट्रंप और मोदी के बीच 'दोस्ती' का पुल, टैरिफ और तेल की लहरों में बह जाएगा, या फिर दोनों देश आखिरी वक्त तक कोई ना कोई रास्ता निकाल लेंगे।

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