सेल्फ डिफेंस यानी आत्मरक्षा की कला आज के दौर में जितनी जरूरी है, उतनी पहले कभी नहीं थी। यह केवल किसी हमले से खुद को बचाने तक सीमित नहीं, बल्कि यह आत्मविश्वास, अनुशासन और मानसिक मजबूती का प्रतीक भी बन चुकी है। दुनियाभर में सेल्फ डिफेंस के लिए कई विधाएं प्रचलित हैं, लेकिन कुंग-फू को इस क्षेत्र में एक प्राचीन और प्रभावी कला माना जाता है। चीन में यह न केवल एक युद्धकला है, बल्कि एक परंपरा और जीवनशैली भी है।
चीन के गुइझोउ प्रांत में एक ऐसा गांव है, जिसे लोग "कुंग-फू गांव" के नाम से जानते हैं। इस गांव का नाम है गैंक्सी डॉन्ग, जहां का हर बच्चा, जवान और बुजुर्ग किसी न किसी रूप में कुंग-फू का अभ्यास करता है। यहां तक कि गांव के 10 साल के बच्चे भी ऐसी फुर्ती और ताकत रखते हैं कि बड़े-बड़े योद्धा उनसे मात खा जाएं।
हर रोज की शुरुआत होती है कुंग-फू सेगैंक्सी डॉन्ग गांव में सुबह की शुरुआत ही मार्शल आर्ट की कड़ी प्रैक्टिस से होती है। चाहे खेतों में काम करने वाले किसान हों, रेहड़ी लगाने वाले दुकानदार हों या स्कूल जाने वाले बच्चे – सभी रोजाना कुछ घंटे कुंग-फू की ट्रेनिंग लेते हैं।
इस गांव में हर व्यक्ति को अलग-अलग कुंग-फू शैलियों में निपुण किया जाता है। कई बार तो लोग अपने घरों के आंगन, खेतों में या सड़क किनारे ही अभ्यास करते नजर आते हैं। गांव में ऐसी सामूहिक भावना है कि यहां हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी भी है और प्रतियोगी भी।
150 साल पुरानी है इस परंपरा की शुरुआतगांव में कुंग-फू की परंपरा करीब 150 साल पुरानी है। कहा जाता है कि एक शाओलिन भिक्षु तांग लाओशुन इस गांव में छिपकर आया था, जब वह सम्राट की सेना से बचने की कोशिश कर रहा था।
शुरुआत में गांववालों ने तांग को बाहरी समझकर उस पर हमले किए, लेकिन जब उन्होंने देखा कि तांग ने अपने निहत्थे हाथों से गांव के सबसे ताकतवर योद्धा को भी हरा दिया, तो वे चकित रह गए। एक बार तो तांग ने फेंके गए पत्थरों को चॉपस्टिक्स से पकड़ लिया, जिससे सभी उसकी प्रतिभा से बेहद प्रभावित हुए।
जब डर सम्मान में बदल गयातांग की क्षमता और कौशल को देखकर गांव वालों ने न केवल अपनी दुश्मनी खत्म की, बल्कि उससे कुंग-फू सीखने की जिद भी की। यहीं से गैंक्सी डॉन्ग गांव में कुंग-फू का बीज बोया गया, जो आज सशक्त परंपरा बन चुका है।
गांव के बुजुर्ग योद्धा 88 वर्षीय झोंग मोलिन, जो छठी पीढ़ी के कुंग-फू शिक्षक हैं, आज भी गांव में शाओलिन मंदिर की तरह क्लास लेते हैं। वह कहते हैं कि “हमारा लक्ष्य सिर्फ आत्मरक्षा नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक संतुलन भी है।”
आधुनिकता के बावजूद नहीं छूटी परंपरागांव भले ही धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन कुंग-फू की परंपरा आज भी वैसी ही है जैसी वर्षों पहले थी। आज के युवा जहां मोबाइल और तकनीक में खोए हुए हैं, वहीं गैंक्सी डॉन्ग के बच्चे और युवक सुबह-शाम पंच, किक्स और ब्लॉक्स का अभ्यास करते हैं।
इस परंपरा की वजह से गांव को ना केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली है। चीन सरकार ने इसे संस्कृति और विरासत का हिस्सा मानकर इसे संरक्षित करने का फैसला किया है।
निष्कर्षगैंक्सी डॉन्ग गांव दुनिया को यह संदेश देता है कि सेल्फ डिफेंस कोई शौक नहीं, एक जीवनशैली होनी चाहिए। इस गांव के लोग यह साबित करते हैं कि यदि परंपराओं को सही दिशा और शिक्षा के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो वे पीढ़ियों तक समाज को मजबूत बना सकती हैं।
यह गांव केवल कुंग-फू सिखाने वाला स्थान नहीं, बल्कि अनुशासन, एकता और आत्मबल का जीवंत उदाहरण है। दुनिया को इससे सीख लेनी चाहिए कि असली ताकत हथियारों में नहीं, आत्मविकास और आत्मरक्षा में है।
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